भूत, वर्तमान और भविष्य (Hindi) Poem by Rajnish Manga

भूत, वर्तमान और भविष्य (Hindi)

Rating: 5.0

Past, Present, And Future...
Original English Poem is written by Ms Jasbir Chatterjee- A Senior member of this Forum (poemhunter.com)

भूत, वर्तमान और भविष्य
(मूल अंग्रेजी रचना जसबीर चैटर्जी साहिबा द्वारा लिखी गई है जो इसी फोरम की एक प्रतिष्ठित कवि सदस्य हैं)

एक बार की बात सुनाऊं
मेरी वय भी तब 23 की थी
मैं दिल्ली में रहती थी....
दिन भर के काम की थकावट से निढाल
मै सुनसान बस स्टॉप पर खड़ी हुयी थी
ठंडी, जमा देने वाली, कुहरायी रात दिसंबर की थी
कांप रही थी, थकी हुयी थी, भूख लगी थी
घबरायी सी अपनी बस के इंतज़ार में खड़ी हुई थी, सोचा
घर पहुँचूँ जहाँ माँ-पापा की गरमजोशी होगी और ज़रा आराम मिलेगा...

तभी धुंध के परदे से निकल कर एक चार्टर्ड बस आयी
सभी खिड़कियों पर जिसके काले काले शीशे फिट थे
मैं जहाँ खड़ी थी वहीँ रुकी वो.
दरवाजा जब खुला
तो बस के कंडक्टर ने, जो किशोर था, मुझे बुलाया....
बस के अंदर आयी तो दिल ‘धक्' रह गया,
मैंने देखा बस में मैं थी केवल एक सवारी....
मैंने उनसे पूछा ये बस किस ओर जायेगी.
दड़ियल ड्राईवर चला रहा था, बिना रुके वह लगा बोलने
‘हम डिपो की ओर चलेंगे'.

मैं फ़ौरन द्वार की जानिब भागी और बोली, ‘रोको, मुझे उतर जाने दो.'
कंडक्टर ने बाँह पकड़ ली एक हाथ से मेरी
और दूजे से दरवाजे को बंद कर दिया
हैंडल को उसने मजबूती से पकड़ रखा था.
भय से मेरा बुरा हाल था.
मैं चिल्लाई, चीखी और दया की भीख भी मांगी...
मन ही मन में मुंह बाए जो मौत खड़ी थी
उसके लिये स्वयं को तैयार कर लिया मैंने

ड्राईवर मेरी ओर मुड़ा और लगा पूछने,
‘तेरा नाम क्या है? '
‘कहाँ रहती है? '
‘क्या काम करती है? '
‘पढ़ाई करती है क्या? '
‘या नौकरी करती है? '
मैंने झूठा-सच्चा कह कर यूँ ही बात बना दी...
‘जानकी है नाम और मैं जनकपुरी में रहती हूँ.'
‘पढ़ती हूँ पर काम साथ में करती हूँ.'

मैंने आँखों की कोरों से
इतना देख लिया था,
बस को उन लोगों ने आखिर छोटी एक सड़क पर मोड़ा,
अन्धकार में जो डूबी थी, सुनसान भी थी,
चारों और वृक्ष थे लंबे, घनी झाड़ियाँ उगी हुई थीं....

मैं चिल्लाई, चीखी और दया की भीख भी मांगी...
मन ही मन में मुंह बाए जो मौत खड़ी थी
उसके लिये स्वयं को तैयार कर लिया मैंने

शायद किसी अज्ञात वजह से
बस की कुछ रफ़्तार घट गई
कंडक्टर की हेंडल पर से पकड़ हुई कुछ ढीली,
अपनी पूरी ताकत से,
साहस को एकत्र किया और
भिड़ा हुआ दरवाजा बढ़ कर खोल दिया
और कूद गयी मैं
बस के बाहर....

पिछले माह, उसके 23 वर्षों बाद
जबकि सारा महानगर रोया था और 23 वर्षीय निर्भया के लिये प्रार्थना कर रहा था,
अस्पताल में जब वह अपनी अंत समय की बची हुई साँसें ले रही थी,
मैं बिस्तर पर बैचेनी से करवट बदल रही थी,
अंधियारे का कम्बल ओढ़े,
मोटे लिहाफ़ में लेटे लेटे भी मैं कांप रही थी....
इसी बीच कानून हमारा, बिना दांत का बाघ हुआ सा
अपने पांव पटकता था उन छः बलात्कारियों के आगे
और ये तथाकथित ‘फास्ट ट्रैक अदालतें' कागज़ के उन पुलिंदों से

कुछ वर्षों की ही और बात है,
मेरी बेटी भी खुद हो जायेगी 23 वर्षों की
महानगर दिल्ली में रहती
हो सकता है उसे भी सूने बस स्टॉप पर खड़ा होना पड़े
दिन भर की नौकरी, पढ़ाई या अन्य काम में मेहनत के बाद,
दिसम्बर की एक ठंडी, जमा देने वाली, धुंध भरी रात में
ठिठुरते हुये, थकन से चूर, भूख से व्याकुल,
घर जाने की जल्दी में वो बस की राह तकेगी, सोचेगी
घर पहुँचूँ जहाँ माँ-पापा की गरमजोशी होगी और ज़रा आराम मिलेगा...

एक माँ की हैसियत से
मैं यह आशा और प्रार्थना करती हूँ
कि ईश्वर रक्षा करेगा उसकी
जैसे उसने मुझे बचाया
और समाज भी पहले से होगा अधिक सभ्य व संवेदनशील,
और तथाकथित चार्टर्ड बसें जो
बलात्कारियों द्वारा होती थीं चालित
अगर दिखेंगी तो केवल डरावनी फिल्मों में...

This is a translation of the poem Past, Present, And Future... by Jasbir Chatterjee
Wednesday, December 16, 2015
Topic(s) of this poem: crime,horror,mother and child ,nightmares,rape,tragedy
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Today is December 16. This date is remembered as a black day through out the country. It was on this day in 2012 that a young girl of 23 along with her male friend boarded a bus at a secluded bus stand in South Delhi. Except 6 bus staff members, no other passenger was inside the bus. They not only sexually assaulted the girl but subjected them to extreme torture. Girl later succumbed to her injuries. This jolted the conscience of the entire nation.
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 28 August 2016

A touching poem, nice translation of a wonderful poem.

1 0 Reply
Rajnish Manga 28 August 2016

Thank you, Sir, for your visit to this poem and liking the poem by Jasbir Chatterjee and its Hindi translation done by me.

0 0
M Asim Nehal 19 December 2015

Outstanding poem by Jasbirji and equally brilliant translation by Rajnishji.....Kya baat hai Janab, Jazbat ko sahi pakadkar aapne is kavita mein Hindi ke pran bhar diye, sach mein jab insaniyat per haiwaniyat havi ho jaati hain tab insaan khud haiwan ban jaata hai uski soch aur samajh per parda padh jaata hai aur woh waishi ban jaata hai....Hum sab ko Almight sahi raasta dikhaye, logon ki majboori samajhne ki taqat de aur insaniyat aur bhalai ki raah per chalaye..Aamin....A thought provoking poem, Indeed.

2 0 Reply
Rajnish Manga 19 December 2015

जसबीर जी की अंग्रेजी कविता के मेरे अनुवाद को पढ़ने, उसकी भावभूमि को समझते हुए उस पर अपनी विचारोत्तेजक टिप्पणी प्रस्तुत करने के लिए और अपने उद्गार व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, मो. आसिम जी.

0 0
Jasbir Chatterjee 16 December 2015

this is a very good translation of my poem, Rajnishji. Good to see you back in action. The Hindi translation brings out the horror of these kinds of incidents quite effectively. Thanks for your efforts.

2 0 Reply
Rajnish Manga 16 December 2015

Thank you so much for your appreciative comments. It is indeed a tribute to all that has gone into the composition of your thematic poem.

0 0
Rajnish Manga

Rajnish Manga

Meerut / Now at Faridabad
Close
Error Success