हम मानवतावादी कहलाते है.. Ham Manavtavadi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हम मानवतावादी कहलाते है.. Ham Manavtavadi

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हम मानवतावादी कहलाते है

ये कैसी पुकार है?
क्यों सन्नाटा चारो और है?
कुदरत भी आप पर रूठी है
मानवता भी आजकल चल बसी है।

रोटी दे दो, चावल दे दो
रहने के लिए घर भी दे दो
बिजली भी चाहिए फ़ोकट
न चाहिए कोई भी टकटक।

क्यों नहीं दे पा रहे हो पानी?
बारिश नहीं हुई है तो परेशानी?
कहीं से भी ले आओ आलू और प्याज
फिर भी भरे रहना असल और ब्याज

हम खुद मक्कार है
फिर भी कुछ सरोकार है
हमें मुफ्त में पानेकी ख्वाहिश है
हम हर तरह से अपाहिज है।

आपकी दाल रोटी चल रही है
हमारी तो बस यही चाल रही है
गलत या सच, हम उसकी पल्लू में
फिर चाहे कोई भी उल्लू बनाये हमें।

जनता ने नहीं पूछा
फिर भी सब ने आके आंसू पोंछा
कुछ सपने दिखाए, कुछ लालच दिया
हम गरीब नहीं थे फिर भी हमें मजबूर कर दिया।

लड़ाई कही और हो रही है
कर मर हम यहाँ रहे है
बारिश के ओले पड़े या आये कामोसमी बदलाव
हम तुरंत बदल देते है हमारा झुकाव।

मक्कार हम है, वो नहीं
जिना खुद को होता है कोई सिखलाता नहीं
यहाँ कोई भी आके झंडा पकड़ा जाता है
लोगों की संपदा को सरेआम झला जाता है।

हम चाहते तो है, ऐसा कुछ ना करें!
कह दो उनसे हमें भड़काया न करें
जितना वतन तुम्हारा है, उतना हमारा भी
हमने एक को तो बीदा कर दिया है, साथ में ललकारा भी

क्या हम लायक है सुविधाओं के लिए?
क्या हम चाहते है और विधवाएं बने?
कितने सुरक्षा कर्मी फर्ज पर मारे जाते है?
फिर भी हम मानवतावादी कहलाते है

Friday, July 4, 2014
Topic(s) of this poem: poem
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welcome rameshbhai Just now · Unlike · 1

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Rohit Sharma shared your photo.

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Santoshkumar Rout likes this. Hasmukh Mehta welcome Just now · Unlike · 1

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welcome teenu tinu Just now · Unlike · 1

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Seen by 1 Keshav Kumar likes this. Keshav Kumar APKA HARDIK ABHAR SIR.VERY NICE LINES SIR 17 hours ago · Unlike · 1

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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