संतुष्ट Poem by Ajay Srivastava

संतुष्ट

बेखोफ और बेफिकृ धीरे - धीरे शान से चलता हुआ
अचानक से देखा तेज रफतार पकड ली अपने
सब भय से देखते और ईधर उधर भागते हुए
लक्षय पर धयान और अनततह लक्षय की छटपटहाट
को अनदेखा करता हुआ अपनी भुख मिटता हुआ 11
भुख मिटते ही अपनी जीभ को कभी दाए और कभी बाए
मुख को साफ करता हुआ फिर वही बेखोफ और बेफिकृ
धीरे धीरे शान से चलता हुआ 11
सामने एक छोटा सा जलाशय देखा और वही बेठ कर आराम करता हुआ
एकटुक देखता पेर को आगे की तरफ फेलाऎ मुख को थोडा पीछे की तरफ
जंगल का बेताज बादशाह * शेर 11
हमेशा असंतुष्ट रहने वाले इंसान
शेर की तरह संतुष्ट बैठ कर सकते हैं?

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