झूठी मुस्कुराहट Poem by Pappu Parihar

झूठी मुस्कुराहट

झूठी मुस्कुराहट का भी, अपना असर है,
लगता है हमको, कुछ हमारी भी कदर है,

उसकी मुस्कान का, कुछ मतलब न लगा लेना,
वो परी है जहाज़ की, दिल न उनसे लगा लेना,

सही कहा है, परियाँ जन्नत में होती हैं,
जन्नत आसमान में होती है,
तो, आसमान के जहाज़ की ये सुंदरियाँ,
क्या परियों से कम होती हैं,

चेहरा मुस्कुराता है, दिल न लगाती हैं वो,
बस दूर से ही, इंसान से नज़रें चुराती हैं वो,

खुदा ने हुश्न भी तो, आसमान में लटका दिया है,
इस गरीब को इस हाल में, एक फटका दिया है,

इतनी ख़ूबसूरती, जमीं पर पैर न धरती है,
नज़रों से लगता है, किसी और पर मरती है,

कितना बेदर्द नज़ारा था, हुश्न होते हुए बेदारा था,
बस एक तकल्लुफ था, हुश्न भी किये किनारा था,

कितना सहती हैं रोज़, किनके-किनके आखों कि बेहहाई,
गर पूछ लो इनसे, पता चल जाए सबके नज़र कि सफाई,

शायद ही किसी ने, नज़रें न मिलाई हों इनसे,
नजर से दिल मिलाने की, आरज़ू की हो इनसे,

इन हसीनों को भी, काम करना पड़ता है,
दूसरों का कितना, ख्याल रखना पड़ता है,

गर वक्त होता, थोडा अभी पीछे,
दीदार न होता, इनका यूँ दरीचे,
होती ये किसी, सूबे की मल्लिका,
न देख पाते यूँ, इनका ये सलीका,

पहरे में रहतीं, हर वक्त किसी के,
न गौर से देख पाते, यूँ जी भर के,
खुदा ने हम पर, मेहरबानी की है,
इनको न यूँ, किसी की रानी की है,

सहमी सी जिन्दगी का, चेहरे से झलक आता है,
किसी और के सामने, चेहरा यूँ जो मुस्कुराता है,

दिल में यूँ कितनी, कसमसाहट होती है तब,
कोई अनजान हसीना, मुस्कुरा देती है जब,

कई तो आदि हैं इसके, न देखते हैं उनकी तरफ,
कैसे छिपाए, दिल का अरमाँ, देखें उनकी तरफ,

बड़ा अजीब लगता है, हलचल सी मच जाती है,
समझ न पड़ता, दिल में झंकार से बज जाती है,

इस तरह शायद, बहुत किस्से बने होंगे,
इन हसीनाओं के, बहुत दीवाने बने होंगे,

...

Monday, September 15, 2014
Topic(s) of this poem: Smile
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