जय भीम Poem by dhirajkumar taksande

जय भीम

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बेज़रो की बस्ती में
रोशनी का नक़्स हैं
जुल्म से टकराते चरागों में
भीम का अक्स हैं

शनाख्त हुयी इन्सा की
जलकर सुरज की तरह
मज्लूमो की बगावत में
भीम का रख़श हैं

सितारा चला गया
आसमां से मिलकर
परिंदों की परवाजोमे
भीम का नफ़्स हैं

तूफां का रूख़ बदलकर
ले आया साहिल पर
ज़िन्दगी फिरसे हमको
भीमने दि बख़्श हैं

देकर संविधान हमे
मंजर ही बदल दिया
मिटा बशर की खातीर
भीम वो शख़्स हैं 

Sunday, September 14, 2014
Topic(s) of this poem: liberty
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