मैं कैसे मान लूँ Poem by Sujeet Kumar Vishwakarma

मैं कैसे मान लूँ



लोग कहते हैं दुनिया बहुत बड़ी है,
मैं कैसे मान लूँ, मेरी तो दो बस्तों में सिमटी,
ट्रेन की एक सीट पर रखी पड़ी है |

कभी शुरुआत करने क लिए इससे ज्यादा रहा नहीं,
हाँ ज़रूरत रही भले मगर, सर उठा किसी से कहा नहीं...
लोग कहते हैं दुनिया बहुत बड़ी है,
मैं कैसे मान लूँ, मेरी तो दो बस्तों में सिमटी,
ट्रेन की एक सीट पर रखी पड़ी है |

सपने अपने खुशियाँ मलाल, धीरज, चिंता, राहत बवाल,
सबकुछ सह ले जाता हूँ,
बस दो बस्तों की लपेट में, सबकुछ कर कह ले जाता हूँ....
लोग कहते हैं दुनिया....

कल का पता न आज ठीक, न आने वाले कल की हवा,
पर मस्त मगन हो चलता हूँ, दो बस्तों में सब राखी दावा |
लोग कहते हैं दुनिया.....

कागज़ कपडे यादें पैसे, और हिम्मत पानी का जुगाड़,
जाने कैसे अत जाता है सब, बस दो बस्तों की ले के आड़.
लोग कहते हैं दुनिया....

सब कहते हैं दुनिया बहुत बड़ी है, अपनी कमाई जुटानी चाहिए,
मेहनत कर दुनिया में अपनी अलग पहचान बनानी चाहिए.
पैसे यादें कपडे किताब, बस इतना मुझे ज़रूरी है,
फिर कुछ न मिले, इतने में ही, ये मेरी दुनिया पूरी है,

लोग कहते हैं दुनिया बहुत बड़ी है,
मैं कैसे मान लूँ, मेरी तो दो बस्तों में सिमटी,
ट्रेन की एक सीट पर रखी पड़ी है |

COMMENTS OF THE POEM
Kalpana Shah 10 September 2013

very well penned... i liked it

1 0 Reply
Shraddha The Poetess 07 September 2013

vry vry vry nice........really bhaiya...good to read it..

1 0 Reply
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