इंसानियत Poem by LUCKY GAUTAM poet

इंसानियत

Rating: 5.0


"इंसान हे तू, इंसानियत का अर्थ समझ
अपने इतिहास को भूल, भविष्य की सोच
अब तो उठ, किये पापों का प्रायश्चित कर
अपने वयवहार रूपी माला मेँ इंसानियत की मोती पीरो
संत न सही इंसान तो बन

एक वक्त था, सतयुग का बोलबाला था
तूने ही अपने हाथो से पुण्य को सम्हाला था
पर आज कलयुग की मार हे
कलयुग का अन्धकार हे जिसमे लुप्त हुआ इंसान हे
आज तू हैवानियत की चादर को ओढ चूका हे
अपने बहत्तर के इंसान को तोड़ चूका हे

इंसानियत का अर्थ तू समझ जर्रूर लेना
बड़ो को आदर, छोटो को प्यार देना
अपने देश के प्रति, अपने कर्त्तव्य निभा लेना
अपने माँ बाप का क़र्ज़ चूका देना
अपने आप को एक दिन मूल रूपी इंसान जर्रूर बना लेना

आप भी समय हे, जाग जा
वरना तेरे भीतर का हैवान ही तुझे खा जाएगा
तू अपने हाथो ही अपने आप को मिटा जाएगा "

Sunday, January 29, 2012
Topic(s) of this poem: hindi,humanity
COMMENTS OF THE POEM
Anita Negi 11 January 2018

Wow really very beautiful words..I also respect your feelings about humanity.....👌👍

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Lucky Gautam 29 January 2012

thank you Aastha... thanq vry much..! !

0 1 Reply
Aastha Uppal 29 January 2012

beautifully written..the essence of life amazingly woven in words. gr88 write..

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