रघुबर! तुमसे बढ़कर, तेरा नाम,
हम रटते रहते तेरा नाम बार-बार।
सँत भक्त हित अवतार धारे तुमने,
सहे वन -गमन, सीता-विरह तुमने,
नाम सहजहिं लेत भगा सब विपदा,
भगतजन सब लेत जग कहँ तार ।
कौशिक मुनि मख हित अवध तजेऊ,
जनक परिताप हित शिव धनु भँजेऊ,
पदकमल सहेऊ अपार भयो दुख,
नाम एक बार, सहजहिं करत सँभार।
शबरी गीध कपि सुग्रीव मिताई तुमने,
विभीषण कर प्रीत निभाई भी तुमने,
नाम सँग जो कोई लेत एक बार प्रीत,
श्रीराम नाम न भी छोड़त एक बार ।
कपिवर भालू की तुमने ली थी सेना,
तब तकेऊ श्रीजानकी मुख सुख अयना,
सब समाज जग भये तब आनंद मग्ना,
नाम तेरी महिमा, आपुहि हरते सब भार।
तुमने तार दिया बस एक पाषाणी,
कुकर्म लगि जो गई जगत लजानी,
अपने आप मिटें सब जग परिताप,
तेरो नाम लेत करत विपदा से पार।
चित्रकूट प्रसँग कियो तुम एक लीला,
परम रहस्यवर सकल रसमय मीला,
नाम दिखावत सहज सब रहस्यवर,
जो कोऊ नाम उदधि बूड़त रस-सार।
रावण कुम्भकर्ण दनुज तुम सँहारे,
तब सीता लखन सँग अवध पधारे,
सुखी सब बने तब अवध-मिथिला के,
नाम गृह"नवीन"बसत बना घर -बार ।
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