हे री गोरी! कहाँ चली तू,
कर पूरा साज श्रृँगार ।
सुभग बसन आभूषण साजे,
चमकते-दमकते उरहार।।
माथे मणिमय मँगटीका सजाये,
सुभग केश जैसे नागिन फुँफकार।
ग्रीवा कँचन मणिमय चमकती
हँसुली मोती जटित कटि भार।।
साटिका नील-पीत मिलें हरित दर्शत,
नहीं छोड़े तुमने कोई भी रँग।
श्याम का ध्यान करती हृदय तू,
बसता मधुर मधुकर तेरे हर अँग।।
कौन बचेगा तेरी नजर से गोरी!
श्याम करकमल नहीं धनुष-बाण।
"नवीन"सदा निरखत तव पदकमलन,
चाहौं बस तेरौ केवल पदत्राण।।
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