राह मे बिछना Poem by Ajay Srivastava

राह मे बिछना

जो महगई बडाते है
जो आपस मे लडवाते है
जो नफरत को बडावा देते है
जो भ्रष्टाचार को बडावा देते है
ऐ काटो क्यों नही तुम इनकी राह मे बिछ जाते 11

जो भेद - भाव करते है
जो कानून को अपनी जेब मे रख कर चलते है
जिनका दीन ईमान बिक चुका है
और जो दूसरो पर अकारण हँसते है
ऐ काटो क्यों नही तुम इनकी राह मे बिछ जाते 11

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