सत्य Poem by Shabab Anjum

सत्य

कहते हैं वो कुछ नहीं है ऐेेसा,
सत्य है पर ये जीवन मरन के जैसा;
ऐसा कि अंधा भी देखे,
देख के उसको हैवान भी कांपे।
धन के पीछे पागल हैं वो,
लज्जत के बस कायल हैं वो;
कर जाते हैं ऐसे काम घिनौने,
नही आगे कुछ उनके हवस के जैसे।
हो गई अब ये बात पुरानी,
डराती थी जब राक्छसौं की कहानी;
कांप जाता है अब तो अंग अंग,
देखे कर ये रूप इंसानी।
लोग दोहरा रूप बनाते हैं,
कुछ बेबाकी का ढोंग रचाते हैं;
छुपते हैं शब्दौं के जाल के पीछे,
झुठला देंगे सच्चाई को जैसे!
दिल कुढता है कि इंसानी हूं मैं,
शर्म के मारे पानी हूं मैं।

Sunday, January 15, 2017
Topic(s) of this poem: sadness
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