कहना ही हैं तो कहो ना खुलकर
चलना ही हैं तो चलो ना खुलकर
छिपकर आग उगलने से कुछ नहीं होता
जलना ही हैं तो जलो ना खुलकर
कहाँ छुप गए हो मुझे छोड़कर अकेला
मिलना ही हैं तो मिलो ना खुलकर
मोहब्बत क्यों छिपाती हो दिल में
खिलना ही हैं तो खिलो ना खुलकर
बदतमीजी की तमीज कहाँ हैं यारों
पीना ही हैं तो पियो ना खुलकर
डरते हुए तड़पते हुए क्यों जीते हो
जीना ही हैं तो जियो ना खुलकर
कितनी कानाफूसी करती हो तुम
कहना ही हैं तो कहो ना खुलकर
डरने वालों में नहीं है यह राजु
चलना ही हैं तो चलो ना खुलकर ।
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