कहना ही हैं तो कहो ना खुलकर Poem by Raju Himanshu

कहना ही हैं तो कहो ना खुलकर

कहना ही हैं तो कहो ना खुलकर
चलना ही हैं तो चलो ना खुलकर

छिपकर आग उगलने से कुछ नहीं होता
जलना ही हैं तो जलो ना खुलकर

कहाँ छुप गए हो मुझे छोड़कर अकेला
मिलना ही हैं तो मिलो ना खुलकर

मोहब्बत क्यों छिपाती हो दिल में
खिलना ही हैं तो खिलो ना खुलकर

बदतमीजी की तमीज कहाँ हैं यारों
पीना ही हैं तो पियो ना खुलकर

डरते हुए तड़पते हुए क्यों जीते हो
जीना ही हैं तो जियो ना खुलकर

कितनी कानाफूसी करती हो तुम
कहना ही हैं तो कहो ना खुलकर

डरने वालों में नहीं है यह राजु
चलना ही हैं तो चलो ना खुलकर ।

Saturday, October 1, 2016
Topic(s) of this poem: love and life
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