पहेली Poem by Ajay Srivastava

पहेली

न चाहते हुए भी हो जाती है|
परिस्थतियाँ कारण बन जाती है|

यही हानि का भी कारण बन जाती है|
यही शिक्षा व सावधानी का अहसास कराती है|

यही धमंड को झुकाती है|
यही सोचने को विवश करती है|

यही खोज करने को प्रेरित करती है|
यही परिणाम के पास पहुँचा देती है|

यही दिल की सच्चाई को प्रगट कर देती है|
यही अपनो को पराय से अलग कर देती है|

पहेली
Tuesday, August 16, 2016
Topic(s) of this poem: riddle
COMMENTS OF THE POEM
Vaishnavi Singh 16 August 2016

Mistake?

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success