धर्म मै विशवास Poem by Ajay Srivastava

धर्म मै विशवास

उनका अपने धर्म मै विशवास
अपने कर्म मै विशवास
सहसा दूसरे धर्म और कर्म
वालो को अपनी और बहुत जल्दी
आकर्षित कर लेता है 11
उनके धर्म और कर्म को
मानने वाले कम है
पर पालन करने वाले सब है
हमारे धर्म और कर्म को
मानने वाले अधिक है
पालन करने वाले कम है 11

उनके धर्म सज़ा निश्चित है
हमारे धर्म मै सज़ा नहीं है
फिर भी हम उनके धर्म को अपना लेते है
अखिर क्यों करते है ऐसा
C नहीं रह पाते अडिग 11
उनका धर्म और कर्म जीत लेता है
हमारा धर्म और कर्म हार जाता है
धोखाधड़ी, बेईमान चोरी जीत लेता है
ईमानदारी, गरिमा, सच्चाई हार जाती है 11

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