कर्म-अपना है| Poem by Ajay Srivastava

कर्म-अपना है|

वही बनाता भी है|

वही बिगड़ता भी है|

वह चलयमान रहता है|

वह विश्वसनीयता को प्रेरित करता है|

आधुनिकता में भी उसका वर्चस्व है|

परिणाम भी वही दिलाता है|

उसके बिना जीवन नीरस हो जाता है|

वह वर्तमान, भूत व् भविष्य सब में विद्धमान है|

वह अमरता के पास है|

वही है मेरा, तुम्हारा और आपका अपना कर्म है|

कर्म-अपना है|
Tuesday, December 22, 2015
Topic(s) of this poem: act
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