खोजता हूँ मै जिसे अब वो शायद न रहा । Poem by Ashok kumar maurya

खोजता हूँ मै जिसे अब वो शायद न रहा ।

खोजता हूँ मै जिसे अब वो शायद न रहा ।

यहाँ हर एक परिंदा अपनी पहचान खो रहा ।

कुछ तो मर गए और कुछ मर रहे हर पल ।

अब तो आदमी मे आदमी ही जिंदा न रहा ।

ये आत्मा भी अब परमात्मा की अंश न रही ।

हर मानव दानव मे तब्दील होता जा रहा ।

शायद ईमान नाम की तो कोई चीज न रही ।

जिसे भी देखो वही बेईमान होता जा रहा ।

आदमी की नीति और नीयत बिगड गई।

वो बुराईयों का कूडादान होता जा रहा है ।

रिश्तों मे अब वो पहले सी गरमाहट न रही ।

बस पैसा ही आप और श्रीमान होता जा रहा ।

सृजन...अशोक कुमार मौर्य

इलाहाबाद

8737994199

Thursday, December 17, 2015
Topic(s) of this poem: love
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Ashok kumar maurya

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