देश के अंदर हो, या देश के बहार
देश की सीमा पार से हो
हवाई मार्ग से, जल मार्ग से
हर बाधा को पर कर, हर दिशा से आते है।
पता नहीं कहाँ कहाँ से आते है।
बस एक ही लक्ष्य और पल भर में पा लेते है।
जैसे कह जाते है।
निजी स्वार्थ छोड़ दो
हमारी तरह मोह त्याग दो
पल भर में पा लो लक्ष्य
कुछ तो चलना हम से भी सीख लो!
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कविता में शब्दों का सुंदर प्रवाह आकर्षित करता है. परन्तु, किसके बारे में बात हो रही है, यह अंत तक ज्ञात नहीं हो पाता. (बहार = बाहर / पर = पार) पता नहीं कहाँ कहाँ से आते है। जैसे कह जाते है।