कमजोर Poem by Ajay Srivastava

कमजोर

Rating: 5.0

कहाँ पर है विद्रोह, चुप रहना कैसे सीख लिया।
मनुष्यता कैसे अन्याय होते देख रही है, हर गलत कार्य को सही मान रही है।
जोश से भरा हुआ स्वर कहाँ खो गया, किसने उस स्वर को दबा दिया.।
रास्ते तो हम सब के एक है, तो इच्छा शक्ति कहा खो गयी।

सभी प्रगति को पाना चाहते है ।
तो अपना मोन तोड़ दो।
अन्याय का विरोध करना सीख़ लो।
स्वय की इच्छा शक्ति व् नैतिकता को जगाओ ।

त्याग दो अपनी कमजोरी को
और प्रगति की और कदम बढ़ाओ ।

कमजोर
Tuesday, November 17, 2015
Topic(s) of this poem: weakness
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 17 November 2015

Very amazing and thought provoking poem shared.

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