प्रांजय Poem by Ajay Srivastava

प्रांजय

Rating: 4.0

प्राप्त कर लेगा हर लक्ष्य.।
रहा की हर बाधा पर कर लेगा.।
न तो कोई उससे प्रतिस्पर्धा कर सकेगा कोई रोक सकेगा.।
जहाँ जहाँ वो जाएगा रोशन कर देगा वातावरण.।
यही है उसका उद्देश्य और चाहत उसकी.।

थोड़ा सा साहस कर.।
बना ले सिद्धांतो को अपने जीवन का हिस्सा.।
रहा खुद पूछे तेरा लक्ष्य.।
बढ़ता चल आगे हर अड़चन को पीछे छोड़.।
बन जा तू अप्रजित, क्यों की यही है अस्तित्व तेरा।

प्रांजय
Monday, November 16, 2015
Topic(s) of this poem: purpose
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 16 November 2015

बढ़ता चल आगे हर अड़चन को पीछे छोड़.। बन जा तू अप्रजित, क्यों की यही है अस्तित्व तेरा।.......yes, go ahead and get the goal. So nicely and aptly depicted. A marvellous poem I like most. Thanks for sharing.....10

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Kumarmani Mahakul 16 November 2015

बढ़ता चल आगे हर अड़चन को पीछे छोड़.। बन जा तू अप्रजित, क्यों की यही है अस्तित्व तेरा।.......yes, go ahead and get the goal. So nicely and aptly depicted. A marvellous poem I like most. Thanks for sharing.....10

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