चाहे जितनी फब्तियाँ कस लो... Poem by Er Vikas Tripathi

चाहे जितनी फब्तियाँ कस लो...

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चाहे जितनी फब्तियाँ कस लो, मुझे ना चाहने वालों,
मेरी तकदीर को उसने कुछ इस तरह से लिखा है;
कि गिरता हूँ, फिर गिरता हूँ, और गिर के जब उठता हूँ,
ऊफनते से भँवर में भी, पुरी मस्ती से चलता हूँ...

Wednesday, April 6, 2016
Topic(s) of this poem: hindi
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