चाहे जितनी फब्तियाँ कस लो...
चाहे जितनी फब्तियाँ कस लो, मुझे ना चाहने वालों,
मेरी तकदीर को उसने कुछ इस तरह से लिखा है;
कि गिरता हूँ, फिर गिरता हूँ, और गिर के जब उठता हूँ,
ऊफनते से भँवर में भी, पुरी मस्ती से चलता हूँ...
Very beautiful poem