Talash Poem by nelaksh shukla

Talash

Rating: 5.0

तलाश
इन्सानों के जंगल मे
ढूँढता अपने अस्तित्व को।
विचारों के झंझावात मे
तलाशता अपनी अस्मिता को।

दौड रहा हूँ वर्षों से
पहुंचना चाहता स्वयं तक।

तलाशा स्वयं को
समय की निरंतरता मे
नदी की चंचलता मे
झील के ठहराव मे
समुन्दर की गहराई मे
व्योम की गंभीरता मे।

उद्दण्ड अहम से
भरे पर्वतों मे
सरल जमीन से
लिपटी घास मे।

सब मे मै,
मुझमें सब।
न मै हूँ पूर्ण
न तू परिपूर्ण।
नियति ने रचा
क्या खेल भरपूर।
जब मिटेगा भेद
पूर्ण और अपूर्ण का।
होगा जन्म शिव का
मेरे मै मे बनूंगा शिवालय
तब आए गा विराम
इस खोज का इस दौड का।
नीलाक्ष

COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 18 March 2015

आपकी कविता पढ़ कर असीम आनंद की अनुभूति हुई. जयशंकर प्रसाद की अमर कृति 'कामायनी' का स्मरण हो आया. आपकी लेखन शैली प्रभावित करती है. यदि यह आपकी पहली कविता है, तो मेरी बधाई स्वीकार करें.

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