नशे की यह लत करदेती है बेकार (Nashe Ki Yeh Lat Kr Deti Hai Bekar) Poem by Dhaneshwar Dutt

नशे की यह लत करदेती है बेकार (Nashe Ki Yeh Lat Kr Deti Hai Bekar)

नशे की यह लत करदेती है बेकार।
अच्छा खासा उजड़ जाता है परिवार।
नशे की यह आदत कितनो को खा गई।
अच्छी खासी ज़िन्दगी पानी में मिला गई।
ज़िन्दगी में हर पल क्यों रहता है परेशान ।
नशे का गुलाम ख़ुद करता है अपना नुकसान
अकेला रह जाता है, साथ छूट जाता है।
तब ज़िन्दगी में नही बच पाता है प्यार।
नशे की यह लत कर देती है बेकार।
अच्छा खासा उजड़ जाता है परिवार।

ये ज़हर पहले तू ख़ुद पी जाता है।
फिर बाद में दुसरो को पिलाता है।
कभी दो घूंट लगाता है, धुँआ उड़ाता है।
नशा करके शायद तुझे बड़ा मज़ा आता है।
क्या यह नशा ही अब तेरी जरूरत है।
बिना नशे के यह दुनियाँ बहुत खूबसूरत है।
बिक चुके सबके घर, मैदान, खेत और चौबारे।
नशा करके घूम रहे है, आज युवा सारे।
नशे की लत से हो चुके सब बेरोजगार।
कोई और नही तुम स्वयं हो इसके जिम्मेदार।
नशे की यह लत कर देती है बेकार।
अच्छा खासा उजड़ जाता है परिवार।

नशा कर देगा ज़िन्दगी में घाव बहुत गहरा।
अंधेरे में जियेगा, ना हो पायेगा कभी सवेरा।
नशे की आदत में खुद नष्ट हो जायेगा।
एक दिन इस दुनियाँ से ही खो जायेगा।
छोड़ दे यह नशा आदत बहुत बेकार है।
इससे तू नही हर कोई आज परेशान है।
किसने नशा बनाया कौन है सबका गुनहगार।
पता नही कब बंद होगा यह सारा कारोबार।
नशे की यह आदत कर देती है बेकार।
अच्छा खासा उजड़ जाता है परिवार।

नशे की यह लत करदेती है बेकार (Nashe Ki Yeh Lat Kr Deti Hai Bekar)
Wednesday, February 28, 2018
Topic(s) of this poem: abused,drugs
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