Koi Shor Nhi Chahiye Poem by Abii Sharma

Koi Shor Nhi Chahiye

Rating: 5.0

टूटा हूँ ऐसा कि बस अब कोई
और शोर नहीं चाहिए
चाहिए तो बस एक सुकून सा जो
हरे नोटों के सामने भी ना सिर झुकाए
एक मेरी तनहा रूह हो जो ख़ुद
तन्हाई से इश्क़ फ़रमाए
बस एक अँधेरा हो रोशनी से
कोसों दूर जहाँ चेहरा तक ना
मेरा नज़र आए
फिर दीवार से लग कर रोता जाऊँ
उस खुदा से कुछ सवाल करूँ
कहूँ उस से कि क्या ये सुकून
पूरी उम्र भर के लिए मिल सकता है
जहाँ सिर्फ़ मेरी तनहा रूह हो
और कोई नहीं
ना कोई मुझे धोखा देने वाला हो और
ना कोई मुझ से बात करने वाला
जहाँ मैं ख़ुद ही महफ़िल लगाऊँ
और ख़ुद ही उसे बर्बाद करूँ
क्या मिल सकता है ऐसा सुकून
जहाँ कोई शोर ना हो
मेरे लिए तो बस वही जन्नत है।

Friday, November 18, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,pain,painful,poem,poems,poetry
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