Bansuri Chali Aao (बाँसुरी चली आओ) Poem by Dhaneshwar Dutt

Bansuri Chali Aao (बाँसुरी चली आओ)

Rating: 5.0

बाँसुरी चली आओ होंठो का निमंत्रण है
तुम्हे बुलाया कान्हा ने आज दिया आमंत्रण है
बिन तुम्हारे कान्हा अधूरा है
गोपियों के मन में उलझन है
बाँसुरी चली आओ होंठों का निमंत्रण है

जितनी राधा प्यारी है उतनी तुम भी प्यारी हो
होंठों से कुछ ऐसी धुन निकलू जो सबसे निराली हो
बिन तुम्हारे हर तरफ कितनी उदासी है
तुमसे मिलने को अब तक मेरी आँखें प्यासी है
मेरे होंठों से निकला हर स्वर तुमको अर्पण है
बाँसुरी चली आओ होंठों का निमंत्रण है

हर तरफ इस दुनिया में कितना अंधकार है
बिन तुम्हारे जीना मुझे नही स्वीकार है
तुम्हारी प्यारी धुन गोपियों को सुनानी है
मेरे संग यह गोपियाँ भी तुम्हारी दीवानी है
तान भावना की है शब्द शब्द तर्पण है
बांसुरी चली आओ होंठों का निमंत्रण है
बिन तुम्हारे मेरी हस्ती अधूरी है
तुम चली आओ गीत गाना जरूरी है
तुम नही आयी तो गीत गा नही पाऊँगा
स्वर तो खीचूँगा पर सजा नही पाऊँगा
अंधकार को मिटाने की बस एक ही किरण है
बाँसुरी चली आओ होंठों का निमंत्रण है

Bansuri Chali Aao (बाँसुरी चली आओ)
Thursday, December 24, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
The poem depicts the love of Lord Krishna and his flute
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 24 December 2015

एक सुमधुर कविता जिसमें कान्हा और उसकी बांसुरी समरूप हो जाते हैं. एक के बिना दूसरा नहीं है. इन दोनों का मिलन ही महारास की ओर ले जाने वाला पहला कदम है. धन्यवाद, मित्र. हर तरफ इस दुनिया में कितना अंधकार है बिन तुम्हारे जीना मुझे नही स्वीकार है

0 0 Reply
Manonton Dalan 24 December 2015

nice poem Bhai.........

1 0 Reply
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