खराब न्यूरॉन्स और मेरा जीवन Poem by ashutosh kumar upadhyay

खराब न्यूरॉन्स और मेरा जीवन

मेरा जीवन, बड़ा सयाना
जो बीज डाला, उसीको बड़ा कर डाला
बुरी, अच्छी, गंदी, सही,
आदतों का पेड़ बना डाला

कुल्हाड़ी चलाई हजार
पर कटे ना इनकी ब्रांच
बुरी आदतों की संगति
बहुत खराब

लगन मेरी देखकर
यह भी है हैरान
टूट जाएगा एक दिन
इनका घमंड भरा मकड़जाल

मुसीबत पड़े, हावी हो जाती हैं
विवेक मेरा हर ले जाती हैं
पर बदल कर रहूंगा मैं
इन न्यूरानों (neurons) का व्यवहार

लक्ष्य है अडिग मेरा
शांत, सौम्य, संयम, कुशल बन जाने का
नए आदतों के
नए न्यूरांस खिला जाने का

This is a translation of the poem Bad Neurons And My Life by ashutosh kumar upadhyay
Thursday, November 24, 2022
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