Andhkaar - अंधकार Poem by Abhaya Sharma

Andhkaar - अंधकार

इन अंधेरे रास्तों में
गुम कहीं हो जाऊंगा
और तुमसे दूर होकर
जब न तुमको पाऊंगा

क्या करूंगा क्या कहूंगा
है क्या पता किसको खबर
है रात काली सुनते आये आज तक
दिन भी काले बादलों से स्याह थे
लेते थे पहन थे कालिमा जो ग्रहण सी
और अंधेरा दिन में मेरे दिल में था

दिल में कैसी आंधियां उमड़ी पड़ीं
रोशनी की राह में अटकी घड़ी
ये अंधेरा मन का है
जो बुझ न पायेगा कभी

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Abhaya Sharma

Abhaya Sharma

Bijnor, UP, India
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