जब फौजी का शव घर आया (Alfred Lord Tennyson की कविता 'home They Brought Her Warriod Dead' का अनुवाद) Poem by BINAY SHUKLA

जब फौजी का शव घर आया (Alfred Lord Tennyson की कविता 'home They Brought Her Warriod Dead' का अनुवाद)

ना चीखी, ना चिल्लाई,
ना ही पीटा छाती उसने,
पास खड़ी सखियाँ सोचें हैरत से,
हुआ अजूबा कैसा भाई,
ना रोइ तो मर जाएगी,
विधवा सखी विचारी |
करें जतन अब कैसे हम सब मिलकर सारी |

उसकी तारीफ के कसीदे पढ़े,
महानता की कहानियां गढ़े,
ना लब हिले, ना नैनों के पट झपके,
ना ही नीर बहे नैनन से |

पास खड़ी बुढ़िया माई ने,
हौले से कफ़न सरकाया,
सोये शव का निष्छल मुख, झट से पट से बाहर आया |
ना लब हिले, ना नैनों के पट झपके,
ना ही नीर बहे नैनन से |

नब्बे साल की बुढ़िया दाई,
बैठी यह सब देख रही थी,
कैसे रोये कोमल बिटिया, चुपचाप ये सोच रही थी |
फौजी के चुटकी नौनिहाल को,
झट से उसने झपट लिया,
बेवा के सूने गोदी में,
लेजाकर उसको पटक दिया |

हां लल्ले कहकर, नौनिहाल से लिपट पडी,
खोई -खोई सूनी आँखों से
अंसुअन की धारा फूट पडी |

Friday, February 6, 2015
Topic(s) of this poem: BALLAD
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