A-271 तेरी इनायत 15.5.17- 11.21 PM
तेरी नज़रों में देखूं और प्यार करता जाऊँ
तेरी इनायत हो तो थोड़ा इज़हार कर लूँ
तेरे प्यार में हमने तो ख़ुद को ही खो दिया
जो कुछ भी बचा है उसकी मैं बात कर लूँ
तेरे तरन्नुम में गीतों का सिलसिला है तू
तेरी हकूमत में मैं एक गीत तैयार कर लूँ
मेरी शिक़ायतों का सिलसिला है बदस्तूर
उन के बीच रहकर तुमको स्वीकार कर लूँ
कई जन्मों का इंतज़ार जो मुकम्मल हुआ
विरह के कारण का थोड़ा मालूमात कर लूँ
तेरी ज़मीन पर हमने पाँव भी सोच के रखे
कहे एक दफ़ा तो लौट के विचार कर लूँ
तेरे क़दमों मैं बैठ कर तुमको देखा करूँ
तेरे क़दमों में बैठ अपना इंतकाल कर लूँ
तेरी नज़रों में देखूं और प्यार करता जाऊँ
तेरी इनायत हो तो थोड़ा इज़हार कर लूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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अच्छी कोशिश है, मित्र. इस सिलसिले को बनाये रखें. धन्यवाद.
Thank you so much Rajnish Ji for your appreciation! It inspires me!