एक शीशा चरमराया -29.8.15—3.33AM
एक शीशा चरमराया
कुछ समझ नहीं आया
हमने तो बल्ला घुमाया
शीशा फिर कहाँ से आया
कड़कती हुई आवाज गुर्राई
हमने भाग कर जान बचाई
मेरी तो चप्पल की बन आई
तभी मम्मी की आवाज आई
करनी नहीं है तुमने पढ़ाई
बन बैठा मैं बिल्कुल शदाई
हमने फिर से दौड़ लगाई
जब मैंने गुल्ली उछलाई
फिर जा शीशे से टकराई
तिड़कने की आवाज आई
हमने फिर से दौड़ लगाई
लेनी पड़ी खेलों से विदाई
अगले दिन एक नया खेल खेला
लग गया देखने वालों का मेला
फुटबॉल को एक किक दे मारी
बोलना पड़ा अंकल जी को सॉरी
अगले दिन फिर किया गुजारा
अपने सभी दोस्तों को पुकारा
गुल्ली क्या उड़ी उड़ गया साला
एक का उसने सिर फाड़ डाला
वो चौका वो छक्का वो मारा
देश आज़ाद हो गया हमारा
कहते हैं देश आज़ाद हो गया
मैंने कहा सब बर्बाद हो गया
खेलने की आज़ादी तो है नहीं
बोलो मैंने गल्त बोला कि सही
देश आज़ाद हो गया
लेकिन अन्य मायनों में
नेता आज़ाद हैं
अपराधी से गाँठ हैं
डॉक्टर आज़ाद हैं
दवाओं की बन्दर बाँट हैं
शिक्षण संस्थाएं आज़ाद है
व्यापारिओं के साथ हैं
कानून रक्षक आज़ाद हैं
अवसाद बनाने के लिए
सरकारी अदारे आज़ाद हैं
उनकी मनमानी के लिए
पुलिस विभाग आज़ाद हैं
अपराधियों की शरण गाह हैं
अगर कोई आज़ाद नहीं हैं तो
वो केवल एक आम इंसान हैं
वो केवल एक आम इंसान हैं
Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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Quite a sensible assessment and a satire on the present situation of the country. Thanks. देश आज़ाद हो गया / लेकिन अन्य मायनों में अगर कोई आज़ाद नहीं हैं तो / वो केवल एक आम इंसान हैं
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