A-087. देखा है इनको Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-087. देखा है इनको

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देखा है इनको 26.4.16—10.15 AM

गरीब गुरबों की क्या बात करूँ
न तो हैवानों में आते हैं
न इंसानों में आते हैं
बीच का सफर इनके बस का नहीं
मुकद्दर के जिक्र में समा जाते हैं

देखा है इनको सड़कों पर छाते हुए
झोपड़ पट्टी कुटिया बनाते हुए
सारा परिवार उसी में छिप जाता है
कुटुम्बों को भी देखा इनके घर आते हुए
मिलकर जश्न मनाते हुए

देखा है इनके बच्चों को
पूरे जोश में आते हुए
बच्चों की रेल बनाए हुए
बिना ईंजन के भगाते हुए
फिर भी खिलखिलाते रहते हैं
अपना हक़ जताते हुए
पूरा शोर मचाते हुए

देखा है इनको
अपने दर्द छुपाते हुए
औरों के काम आते हुए
अपना बोझ उठाये उठाये
औरों का बोझा उठाते हुए
अपनी पीड़ा सहते हुए
औरों की दुःख मिटाते हुए
अपने दर्द को भूलकर
औरों के जख्म सहलाते हुए

देखा है इनको
पर्व त्यौहार जश्न मनाते हुए
खूब हुरदंग मचाते हुए
ढोल पीपे बजते हैं
नाचते हुए नचाते हुए
प्रभु के गुणगान गाते हुए
होली का रंग दिखाते हुए
पूरी मस्ती में आते हुए
बिना रंग के भी हर रंग उड़ाते हुए

देखा है इनको
चिथड़ों से तन को छुपाते हुए
खुले में नग्न नहाते हुए
कुत्तों के संग भी रह लेते हैं
बिना ऐतराज़ जताते हुए

नागरिक होने का अधिकार है इनका
अपना भरोसा भी जताते हुए
नेतायों को अपना बताकर
अपना वर्चस्व दिखाते हुए
नेताओं के आँसू भी पी लेते हैं
उनके हाँथों से हाँथ मिलाते हुए
उनकी मंद मंद मुस्कान पर भरोसा कर
खुद को उनका बताते हुए

देखा है इनको
जीवित हैं पर दुःख को छिपाते हुए
कैसे रहते होंगे फिर भी मुस्कराते हुए
मेरा भारत महान की परिभाषा कौन जाने
फिर भी मेरा भारत महान के नारे लगाते हुए
…………………………नारे लगाते हुए

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-087. देखा है इनको
Wednesday, June 29, 2016
Topic(s) of this poem: educational,motivational,nationality
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 30 June 2016

अापकी कविता दिल को छू गयी, सब कुछ होते हुए भी हम सिर्फ शिकायत करते हैं अॉर कुछ न होते हुए भी वो खुश रहते हैं।. अति उत्तम कविता, जिस बारीकी से अपने इन सामान्य जीवन विश्लेषण किया है यह प्रशंशा का पूरा उत्तराधिकार रखता है,10++++

1 0 Reply

Thank you so much! Asim Ji! for sharing your feeling, wonderful comments! & Votes of course! . Gogia

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