A-076. तुम न जाया करो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-076. तुम न जाया करो

Rating: 5.0

तुम न जाया करो -23.7.15- 9.10 AM

इतनी सज धज के
तुम न जाया करो
फूलों की तरह
तुम न मुस्कराया करो
किसी को देखकर
तुम न शर्माया करो
अपने दिल की बात
तुम न बताया करो
तुम न जाया करो …

यूँ जुल्फें काढ़कर
चोटी को फाड़कर
सोलह सिंगार कर
नज़रों को वार कर
आँखों में कजरा
पलकों पर मजरा
नाक में नथनिया
कानों में झुमके सजाकर
तुम न जाया करो …

आँखें मटका कर
नज़रें झुका कर
गर्दन घुमा कर
होश गुमा कर
कंधे झटका कर
ओढ़नी गिरा कर
सीना तान कर
कमर लचका कर
तुम न जाया करो …

लोगों की फजीहत में
उनकी बुरी नीयत में
दुनिया के मेले में
और कहीं अकेले में
सैरगाह के झमेले में
सर्कस के मेले में
अजनबीयों के बीच
अपनों के समीप
तुम न जाया करो …

जब रात अँधेरी हो
किसी के गाँव में
चंदा की रौशनी में
तारों की छावँ में
भींगी चुनरिया हो
सावन के छावँ में
गहन सन्नाटा हो
किसी के चाव में
तुम न जाया करो …

अपने उदास हों
जो हमारे खास हों
रास्ते में छोड़कर
रिश्ते मरोड़ कर
मुँह घुमा कर
नजरें छुपा कर
निराशा के अँधेरे में
सोचों के घेरे में
तुम न जाया करो …तुम न जाया करो …

Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-076. तुम न जाया करो
Sunday, April 17, 2016
Topic(s) of this poem: love and friendship
COMMENTS OF THE POEM
Ratnakar Mandlik 18 April 2016

Khubsoorat nasihat........!

0 0 Reply
M Asim Nehal 18 April 2016

Kya baat hai.....10

1 0 Reply

Thank you so much for your comments

0 0
Mahesh Kumar Bose 18 April 2016

wah! wah! beautiful......very nice poem sir

0 0 Reply

Thank you so much!

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