आकर हूँ...निराकार हूँ,
मैं तो यह सारा संसार हूँ,
मैं शुन्य मैं अंक हूँ,
मैं ही राजा...मैं ही रंक हूँ,
मैं नर मैं नारी...
तुम्हारा देव...पूजा तुम्हारी
मैं ही बाती...और दिया हूँ मैं..
जिसने दिया...और लिया हूँ मैं..
मैं क्रोध...मैं प्यार में..
मैं तो हूँ इस सारे संसार में,
हर मनुष्य, हर जीव में मैं ही...
तेरे मकान की हर नीव, हर ईंट में मैं ही...
सागर में...गागर में...
चन्द्र में...दिवाकर में...
मोह में...त्याग में...
मैं ही तेरे पश्च्याताप में...
तुम में भी मैं हूँ...मुझ में भी तुम हो...
तुम मैं हूँ....मैं तुम हो...
सोहम...सोहम...
मैं वर्षा...मैं ही झरना...
मैं ही प्रेम...तो मुझसे क्यूँ डरना...
मैं भूत...मैं वर्त्तमान हूँ...
कभी न रुकूँ एसी एक चाल हूँ...
मैं माया...मैं ही माँ का साया भी हूँ...
मैं दुलार...हर पुकार..और हर प्रकार में मैं ही हूँ..
मैं अन्धकार में..मैं ही प्रकाश में...
मैं ही तेरा धोका...मैं ही तेरे विश्वास में..
तुम में भी मैं हूँ...मुझ में भी तुम हो...
तुम मैं हूँ....मैं तुम हो...
सोहम...सोहम...
मैं ही पशु...और पक्षियों में भी..
वन में मैं ही...और उपवन भी मैं ही हूँ..
तेरे लोभ...प्रलोभ में भी मैं ही हूँ...
मैं दुःख में...मैं सुख में...
मैं मत्स्य में...मैं कीट में...
जो तू सोचे सके...
बड़ी या छोटी...हर एक चीज़ में...
मैं ही दुआ में, पूजा और अज़ान में मैं ही हूँ..
मैं ही हिन्दू...मुसलमान में...मैं ही तो हर एक इंसान में...
मैं ही तेरे गीता...मैं ही तेरे क़ुरान में...
मंदिर..मस्जिद, जिर्जघर, गुरूद्वारे और तेरे मकान में...
किसी लाचार के दर्द में...और उसके सहारे में मैं ही...
हर हवन और हर यज्ञ में मैं ही...
जहाँ जाओगे मुझे पाओगे...
तुम्हारे जाने और आने में भी मैं ही हूँ...
मैं हर जन में...मैं हर कण में...
हर बीते हुए..और आने वाले क्षण में...
तुम्हारे ह्रदय में...तुम्हारे मन में...
रोम रोम में...तुम्हारे तन में...
यह सारा संसार मेरा है...मैं इस संसार का हूँ...
मैं तुम्हारी सोच में...तुम्हारे कहे हर इस वाक्य में मैं हूँ...
याद रखना कभी न भूलना...
मुझमें भी तुम हो...तुम में भी मैं हूँ...
सोहम सोहम...
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I would like to translate this poem
very good.... heart touching lines :- :-