तुम और हम Poem by Priyanka Gupta

तुम और हम

Rating: 4.0

ये कैसा बंधन है
चाहत का कैसा ये सितम
उधर तू भी चुप है
इधर चुप्पी साधे हैं हम

न तू कुछ कहे
न मैं कुछ सुनु
ये होंठ सिल गए कैसे
कैसे ये छा गए ग़म

आ इस चुप्पी को तोड़ दें
सुलझा दें उलझनें हम
न घटे मिठास रिश्ते की
न प्यार कभी हो कम

साथ न हो तेरा
तो सांसे चले मद्धम मद्धम
क्यूंकि इक दूजे के लिए बने
तुम और हम

Monday, September 22, 2014
Topic(s) of this poem: love
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