कुछ इस तरह मैंने जिंदगी
को आसान कर लिया....
किसी से माफ़ी माँग ली
और किसी को माफ़ कर दिया....
किसी को भुलने के लिये कहा
और किसी को भुला दिया(?) ...
किसी की ख़ामोशी को समझा
और किसी के लिये ख़ामोशी अपना लिया...
इन रिश्तों की उलझनों में
मैंने ख़ुद को कही खो दिया...
और इस तरह मैंने ज़िंदगी
को आसान कर लिया...
- संध्या
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कविता की पहली चार पंक्तियाँ बहुत बार पढ़ चुका हूँ, लेकिन उसके बाद की पंक्तियाँ बहुत कुछ कहती हैं. धन्यवाद, संध्या जी..