जब से सुना है तुम आ रहे हो Poem by KAUSHAL ASTHANA

जब से सुना है तुम आ रहे हो

जब से सुना है तुम आ रहे हो
मेरे स्वप्न फिर से सवरने लगे है |
तुम्हारी प्रतीक्षा में सदियाँ बितायी
सहा दु: ख रातो की निदिया गवायी |
अचम्भित हूँ मै क्या सच तेरा आना
पूरा हुआ अब अधूरा तराना |
पाकर तुम्हे मै पगला न जाऊ
फिर दिल में अरमा मचलने लगे है |

व्याकुल था मन हृदय वेदना में
विस्मृत गयी यादे अवचेतना में |
मिलन का सुखद पल पास आ रहा है
बस में नही मै नशा छा रहा है |
अदभुत है यह क्षण बिना मधु पिएँ ही
मेरे पाव फिर से बहकने लगे है |

वीरान खामोश था मेरा गुलशन
विरहाग्नि में नित सुलगता था यौवन |
युगो बाद फिर प्रेम पुर्वा चली है
फिजाओ में मादक शोखी घुली है |
लहरा उठे पुष्प मुरझाए जो थे
खिल के सभी फिर महकने लगे है |

संदेश दे कागा कब से खड़ी थी
घर की मुड़ेड़े सूनी पड़ी थी |
बिखरी उदासी जीवन था कानन
पायल की अब छम-छ्म गुजेगी आगन |
सुन दूर से तेरे पाँवो की आहट
पंछी सभी आ चहकने लगे है |

तुम्हारे बिना मेरा जर्जर हुआ तन
भूला उड़ाने थम सा गया मन |
हुए सुर्ख आँसू जो आखो में मेरे
गिरने लगे आज आने से तेरे |
रोमांचित तन प्रफुल्लित नयन है
मेरे ओठ फिर से दहकने लगे है |

....................कौशल अस्थाना

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