लगाव Poem by ainan ahmad

लगाव

Rating: 5.0

वो चला जाएगा छोड़कर मुझको
इस डर से पास उसके कभी मैं जाता नहीं।
वो बेदर्द भी ऐसा है,
कभी मुझको पास अपने बुलाता नहीं है।
फ़ासला तो लम्हों की है बीच अपने
पर सदियाँ गुजर गयी
वो कभी आया नहीं और मैं कभी जाता नहीं।
सोचा था ज़िंदगी गुजर जाएगी तन्हाई में युहीं।
मगर बेबसी का आलम अब तो ये है।
के लम्हा भी उनके बिन गुजर पाता नहीं है।

Sunday, November 29, 2020
Topic(s) of this poem: relationship
COMMENTS OF THE POEM
Aarzoo Mehek 29 November 2020

Thaka dete hai ye rishte kabhi kabhi. Bohot khoob likha hai.

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