मतवाला Poem by ainan ahmad

मतवाला

अपना दिन और रात क्या है?
सुबह पाँच बजे जो नींद पड़ी, फिर सात बजे उठ जाते हैं।
सूरज की एक झलक को देख कर, फिर हम सो जाते हैं।
फिर कब उठते हैं ये ख़बर ना मुझको, हाँ जब उठते हैं सूरज जा चुका होता है,
चाँद बिखर जाता है आँगन में।
यही दिन है, रात है अपनी
फिर चाँद की रहो में पता ना चलता
कब गुम हो जाते है।
कब चाँद चला जाता है। कब सूरज आ जाता है।
हर लोग मुझे युहीं तो नहीं
मतवाला सा कह जाता है।
मतवाला का आना-जाना क्या?
मतवाला का सोना-जग जाना क्या?
हर हाल में वो दुनिया से अनजाना है।
हर अपनो से वो बेगाना है।
हर बात में ऐसा दिखता है वो,
जैसे वो ही इस बात को करने का ठाना है।
जीवन का हर मोड़ अपना निराला है।
तभी तो लोग सभी कहते है,
तू तो एक मतवाला है।

Friday, November 6, 2020
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
ainan ahmad

ainan ahmad

india
Close
Error Success