अपना दिन और रात क्या है?
सुबह पाँच बजे जो नींद पड़ी, फिर सात बजे उठ जाते हैं।
सूरज की एक झलक को देख कर, फिर हम सो जाते हैं।
फिर कब उठते हैं ये ख़बर ना मुझको, हाँ जब उठते हैं सूरज जा चुका होता है,
चाँद बिखर जाता है आँगन में।
यही दिन है, रात है अपनी
फिर चाँद की रहो में पता ना चलता
कब गुम हो जाते है।
कब चाँद चला जाता है। कब सूरज आ जाता है।
हर लोग मुझे युहीं तो नहीं
मतवाला सा कह जाता है।
मतवाला का आना-जाना क्या?
मतवाला का सोना-जग जाना क्या?
हर हाल में वो दुनिया से अनजाना है।
हर अपनो से वो बेगाना है।
हर बात में ऐसा दिखता है वो,
जैसे वो ही इस बात को करने का ठाना है।
जीवन का हर मोड़ अपना निराला है।
तभी तो लोग सभी कहते है,
तू तो एक मतवाला है।
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