दिलचस्प Poem by Shubham Praveen

दिलचस्प

दिलचस्प है ये ख्याल
की इसमें तुम हो, एक गुनाह की तरह,
वक़्त से बेवफा, एक इत्तेफ्फाक की तरह,
तुम हो, और यही हो,

मेरे एहसासों को कोई
पकाए महीनो धुप में,
बदले उनका ठिकाना हर दोपहर,
दरदरे मिर्च के अचार की तरह,
तोह जाने की तुम हो,
सरसों सी तेज़, मिर्च सी तीखी,
जलते हुए हलक की इच्कियों की तरह
तुम हो, और यही हो,


मेरे दीवानेपन को कोई जो पाले उम्र भर,
उस बिगड़ी हुई औलाद की तरह,
बर्दाश्त करे सब्र से शैतानियाँ और वेह्शियत को,
हंस के टाल दे उसकी हर एक खता,
तोह जाने, की तुम हो,
शरारत में छुपी मासूमियत की तरह,
हर खता में छुपी नसीहत की तरह,
अटखेली पर मदमस्त खिलखिलाते ठहाको
की तरह, तुम हो और यहीं हो |

Tuesday, September 19, 2017
Topic(s) of this poem: love
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