रहस्य Poem by Shipra singh (ships)

रहस्य

Rating: 4.8

मुझे पसंद हैं दुनिया को जानना
जानना चाहती हू इस दुनिया का रहस्य,
कोई नही जानता ये दुनिया कैसे बनी।
बनाना चाहती हू इस दुनिया से अपनी पहेचान,
क्योकि दुनिया का रहस्य, रहस्हमयी हैं।

धरती के नीचे कई परते हैं,
आसमान में कई परते हैं,
परते कैसे बनी
कोई नही जानता।

सूरज हैं लाखो ऊपर आसमान में,
तारे हैं खाबो ऊपर आसमान में,
तो भगवान कितने ऊपर आसमान में,
कोई नही जानता ।

मुसलमान कहता है इसे अल्लाह ने बनाई,
हिन्दु कहता हैं इसे भगवान ने बनाई,
इसाई कहते हैं इसे ईसा मैसी ने बनाई,
मै कहती हूं की इसे प्राकृतिक ने बनाई,
क्योकि दुनिया का रहस्य, रहस्यमयी हैं।

शिप्रा सिंह🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Sunday, June 11, 2017
Topic(s) of this poem: nature
COMMENTS OF THE POEM
Preete singh 14 July 2018

Very intresting poem...

0 0 Reply
Jazib Kamalvi 05 October 2017

A refined poetic imagination, Shipra. You may like to read my poem, Love And Lust. Thank you.

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