ख़ामोशी की सदाएं Poem by Jaideep Joshi

ख़ामोशी की सदाएं

जब मेरा नाम गुम जाए,
चेहरा भी बदल जाए,
और शायद मेरी आवाज़ भी
तुम्हें अजनबी सी लगे;
तब तुम मेरी ख़ामोशी की सदा सुनना।
ख़ामोशी जो बदलती नहीं कभी;
शब्दों की रूह से निकलकर
गूंजती रहती है इसकी सदा;
वक़्त की सरहदों के
इस पार से उस पार तक;
फिर भी एक अलहदा शख्सियत लिए हुए-
बेजोड़, बेनज़ीर, बेपनाह।

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