ज्योति पर्व Poem by Jaideep Joshi

ज्योति पर्व

दीपों की शुभ ज्योति श्रृंखला ने
ध्वस्त किया तिमिर का गर्व;
अमावस्या की रात्रि को उजला
करने आया फिर दीपावली पर्व।

जगमग-जगमग है उजियाला,
दृश्य मनोहर यह अति निराला;
घर आँगन की हुई सफ़ाई,
दिखता नहीं कोई मकड़ी का जाला।

पहनें नए परिधान खाएं मिठाई,
पठाखों से पर परहेज़ हो भाई;
पर्यावरण के मित्र बनें हम,
याद दिलाने यह दिवाली आई।

भय अज्ञान लोभ अभिमान
सभी व्यसनों से हो परित्राण;
इस पुनीत अवसर पर इतना
प्रभु मेरे दो मुझे वरदान।

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