एक शाम Poem by sanjay kirar

एक शाम

एक अलसाई शाम
लहरे करवटे बदल रही थी
इन बाँहों के गोले में
खिल गया था ये मातमी चेहरा
सोचता हूँ: -
दीर्घ आयु सिमट जाती
इस पल यही
तो कितना अच्छा होता।

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