वो रात अजीब थी खामोश थी
सन्नाटे की आवाज थी
गहन अन्धेरा था निशा में
मैं बैठा था गहन नशे में
अपनी किस्मत को कोसता
आंख थी चांद पर
हाथ में गुलाब था
होठों पर उसका नाम था
आंख में सैलाब था
इक अदद खामोशी थी
इक मैं था
इक तेरा दर्द था
और मेरी तन्हाई थी
आपस में करते थे बातें
एक दूजे से हम तीनों
कभी मैं करता था बातें
तो सुनती थी तनहाई भी
तेरा दर्द बढ़ बढ़ कर
आंख मेरी भिगो देता था
मैं तुझको याद कर कर के
कभी हंस लेता था
कभी रो लेता था
तेरी वह जो चंद बातें
दिल को खूब रुलाती थी
लेकिन बाद तेरे जाने के
वही तो याद रह जाती थी
हमने सुने थे कभी किस्से
बचपन में रांझा और मजनू के
लेकिन जब मशहूर हुए हम भी
तो हमको भी पता चला
कितना दर्द उठा लाए थे
वह यहां तक आने में
कितना उन्होंने भुला होगा
यह पहचान बनाने में
धन्यवाद
Mannu Ankhiriya
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Gjb sir ji