वह रात Poem by Mannu Ankhiriya

वह रात

वो रात अजीब थी खामोश थी
सन्नाटे की आवाज थी
गहन अन्धेरा था निशा में
मैं बैठा था गहन नशे में
अपनी किस्मत को कोसता
आंख थी चांद पर
हाथ में गुलाब था
होठों पर उसका नाम था
आंख में सैलाब था
इक अदद खामोशी थी
इक मैं था
इक तेरा दर्द था
और मेरी तन्हाई थी
आपस में करते थे बातें
एक दूजे से हम तीनों
कभी मैं करता था बातें
तो सुनती थी तनहाई भी
तेरा दर्द बढ़ बढ़ कर
आंख मेरी भिगो देता था
मैं तुझको याद कर कर के
कभी हंस लेता था
कभी रो लेता था
तेरी वह जो चंद बातें
दिल को खूब रुलाती थी

लेकिन बाद तेरे जाने के
वही तो याद रह जाती थी
हमने सुने थे कभी किस्से
बचपन में रांझा और मजनू के
लेकिन जब मशहूर हुए हम भी
तो हमको भी पता चला
कितना दर्द उठा लाए थे
वह यहां तक आने में
कितना उन्होंने भुला होगा
यह पहचान बनाने में
धन्यवाद
Mannu Ankhiriya

वह रात
Sunday, January 15, 2017
Topic(s) of this poem: sad love
COMMENTS OF THE POEM
Gp thakur 13 February 2018

Gjb sir ji

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