रात के बाद Poem by Mithilesh Singh

रात के बाद

‘चिराग' उन्हें फीका लगा होगा
हमने जो ‘दीपक' जलाया अभी


खुशियाँ भी कुछ कम लगी होंगी
खुल के हम जो ‘मुसकराये' अभी


गफ़लत में थे देख परतें ‘उदास'
आह भर भर के वो पछताए अभी


कद्र कर लेते रिश्ते की थोड़े दिनों
जब फंसे थे मुसीबत में हम कभी


तब उड़ाई हंसी ज़ोर से हर जगह
मानो दिन न फिरेंगे हमारे कभी


ऐसा भी न था जानते कुछ न ‘वो'
रात के बाद दिन जग की रीत यही


- मिथिलेश ‘अनभिज्ञ'

Wednesday, February 3, 2016
Topic(s) of this poem: pride,relationship
COMMENTS OF THE POEM
Aarzoo Mehek 03 February 2016

ऐसा भी न था जानते कुछ न ‘वो' रात के बाद दिन जग की रीत यही Bohot khoobsurati se ehsaason ko lafzon main piroya hai. Daad hi daad.

1 0 Reply
Mithilesh Singh 03 February 2016

Most welcome Mehek ji :)

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