पाना Poem by Ajay Srivastava

पाना

निर्भीक कदम बढ़ाये जा ।
राह की बाधा को पार कर।
कठिनओ को पीछे छोड़।
नई राह की खोज में।

कुछ अलग करने की ठान ले।
आत्म शक्ति को प्रबल बना ले।
हर कार्य को अपना समझ ले।
ह्रदय और मस्तीख को एकाग्रचित्त कर ले।

फिर देख ले अपनी चाहत को अपने सामने पलके बिछाये
कह उठेंगी हाँ में वाही हुँ जिसे तू पाना चाहता है।

पाना
Friday, November 27, 2015
Topic(s) of this poem: desire
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