indu rinki verma

indu rinki verma Poems

मां मुझे डर लगता है.... बहुत डरलगता है....सूरज की रौशनी आग सी लगती है....
पानी की बुँदे भी तेजाब सी लगती हैं....
मां हवा में भी जहर सा घुला लगता है....मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है....
मां याद है वो काँच की गुड़िया, जो बचपन में टूटी थी....
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Kitna asaan hai na...

Gairon ki betiyon ka vajood tay kar jana..
Nazariye ke tarazoo ko apmaan se bharkar..
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कितना आसान है न....

गैरों की बेटियों का वजूद तय कर जाना …
नज़रिए के तराजू को अपमान से भरकर…
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कितना आसान है न....

गैरों की बेटियों का वजूद तय कर जाना …
नज़रिए के तराजू को अपमान से भरकर…
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The Best Poem Of indu rinki verma

मां मुझे डर लगता है

मां मुझे डर लगता है.... बहुत डरलगता है....सूरज की रौशनी आग सी लगती है....
पानी की बुँदे भी तेजाब सी लगती हैं....
मां हवा में भी जहर सा घुला लगता है....मां मुझे छुपा ले बहुत डर लगता है....
मां याद है वो काँच की गुड़िया, जो बचपन में टूटी थी....
मां कुछ ऐसे ही आज में टूट गई हूँ....
मेरी गलती कुछ भी ना थी, माँ फिरभी खुद से रूठ गई हूँ....
माँ बचपन में स्कूल टीचर की गन्दी नजरों से डर लगता था....
पड़ोस के चाचा के नापाक इरादों से डर लगता था...
माँ वो नुक्कड़ के लड़कों की बेवकूफ बातों से डार लगता है....और अब बोस के वह शी इशारों से डरलगता है....
मां मुझे छुपा ले, बहुत डर लगता है....
मां तुझे याद है तेरे आँगन मेंचिड़ियासी फुदक रही थी....
ठोकर खा के में जमीन पर गिर पड़ी थी....
दो बूंद खून की देख के माँ तू भीरो पड़ी थी....माँ तूने तो मुझे फूलों की तरह पाला था....
उन दरिंदों का आखिर मैंने क्याबिगाड़ा था....
क्यों वो मुझे इस तरह मसल के चले गए है....बेदर्द मेरी रूह को कुचल के चले गए....
मां तू तो कहती थी अपनी गुड़िया को दुल्हन बनाएगी....मेरे इस जीवन को खुशियों से सजाएगी....
माँ क्या वो दिन जिंदगी कभी ना लाएगी....
माँ क्या अब तेरे घेर बारात ना आएगी? ? ? ? ?
माँ खोया है जो मैने क्या फिर से कभी ना पाउंगी? मां सांस तो ले रही हु....
क्या जिंदगी जी पाउंगी? मां घूरते है सब अलग ही नज़रों से....
मां मुझे उन नज़रों से छूपा ले....
माँ बहुत डर लगता है मुझे आंचल में छुपा ले........
~इंदु~

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