Yog योग Poem by S.D. TIWARI

Yog योग

योग विद्या का जग का, गुरु रहा है भारत
बना अग्रणी सदियों से, रखे स्वयं महारत
रखे स्वयं महारत, जाना रखना संतुलन
सुचारु चलने हेतु, तन, मन, बुद्धि औ जीवन
वृद्धि आत्मिक शक्ति में, तन-मन रखे निरोग
बड़ा निराला यन्त्र, आत्म नियंत्रण का; योग

(C) एस० डी० तिवारी

Sunday, June 21, 2015
Topic(s) of this poem: education
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