Ghayath Almadhoun Poems

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1.
Wij

Wij die zijn rondgestrooid als granaatscherven, van wie het vlees door de lucht vliegt als regendruppels, wij bieden onze oprechte verontschuldiging aan aan iedereen in deze beschaafde wereld, mannen, vrouwen en kinderen, omdat we onopzettelijk in hun veilige huizen zijn verschenen, zonder toestemming te vragen. We bieden onze excuses aan, omdat we onze afgerukte lichaamsdelen in hun sneeuwwitte geheugen hebben geprent, omdat we het beeld van de normale, complete mens in hun ogen hebben geschonden, omdat we zo schaamteloos waren om plotseling op te duiken in het journaal, op de internetpagina's en in de kranten: naakt, met alleen ons bloed en onze verkoolde resten. We bieden onze excuses aan aan alle ogen die niet rechtsreeks naar onze wonden durven te kijken, uit angst dat ze kippenvel zullen krijgen. We zijn excuses verschuldigd aan iedereen die zijn avondmaal niet meer door zijn keel kon krijgen, nadat hij onverwacht was geconfronteerd met onze verse beelden op de televisie. We zijn excuses verschuldigd voor het leed dat we hebben toegebracht aan iedereen die ons in deze toestand heeft gezien: zonder opsmuk en zonder dat er een poging was gedaan om onze resten bijeen te vegen en weer aan elkaar te naaien voordat we op hun schermen verschenen. We zijn ook excuses verschuldigd aan de Israëlische soldaten die de moeite hebben genomen in hun vliegtuigen en tanks op knoppen te drukken, met de bedoeling ons op te blazen. We bieden onze excuses aan voor ons weerzinwekkende uiterlijk, sinds ze hun granaten rechtstreeks op onze kwetsbare hoofden hadden afgevuurd. En voor al die uren die ze nu in psychiatrische klinieken moeten doorbrengen, om weer mens te worden, zoals ze dat waren voor onze transformatie tot afstotelijke lichaamsdelen, die hen achtervolgen wanneer ze proberen te slapen.

Wij zijn de dingen die jullie op jullie schermen en in jullie kranten hebben gezien. Als jullie de moeite nemen om de stukjes bij elkaar te leggen, zoals bij een puzzel, dan zullen jullie een duidelijk beeld van ons krijgen. Zo duidelijk, dat je niet in staat zult zijn om nog iets te doen.
Vertaling: Djûke Poppinga
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2.
Mes

Mes išdrabstyti aplinkui gabalais, mūsų mėsa skrieja oru it lietaus lašai, mes nuoširdžiai atsiprašome visų šio civilizuoto pasaulio piliečių, vyrų, moterų ir vaikų, nes netyčia pasirodėme jų taikiuose namuose nepaprašę leidimo. Atsiprašome, nes įspaudėme savo nutrauktas kūnų dalis į jų tyrą it sniegas atmintį, nes jiems regint išniekinome įprastą vientiso žmogaus kūno vaizdą, nes turėjome įžūlumo staiga įšokti į naujienų suvestines, interneto ir spaudos puslapius, nuogi, nes įšokome savo krauju ir apdegusiais likučiais. Mes atsiprašome visų, kurie nedrįso atvirai pažvelgti į mūsų žaizdas, baimindamiesi juos apimsiančio siaubo, atsiprašome ir nesugebėjusių baigti vakarieniauti, nes jie netikėtai per televiziją pamatė šviežius mūsų atvaizdus. Mes atsiprašome visų kentėjusių, nes pamatė mus tokius, nepagražintus, nes niekas nesistengė mūsų sulipdyti į viena, sudėlioti mūsų palaikų, prieš mums pasirodant ekranuose. Mes taip pat atsiprašome Izraelio kareivių, kurie, norėdami mus ištaškyti į gabalus, taip stengėsi spaudydami mygtukus savo lėktuvuose ir tankuose, mes atsiprašome už tai, kokie bjaurūs atrodėme, jiems nukreipus savo bombas ir sviedinius tiesiai į mūsų minkštas galvas, atsiprašome už tas valandas, kurias jiems teks dabar praleisti psichiatrijos klinikose, stengiantis vėl tapti žmonėmis, kuriais jie buvo prieš mums pavirstant į atgrasius kūnų gabalus, persekiojančius juos kaskart jiems bandant užmigti. Mes esame jums ekranuose ekranuose ir spaudoje matyti dalykai, ir jeigu pasistengtumėte sudėti visus gabalus į viena, kaip dėlionės detales, pamatytumėte mus aiškiai, taip aiškiai, kad nebepajėgtumėte daugiau nieko padaryti.

Translated from English by: Marius Burokas
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3.
НИЕ

Ние, кои сме расфрлани наоколу во делчиња, чие тело лета низ воздухот како капки дожд, најдлабоко им се извинуваме на сите во овој цивилизиран свет, мажи, жени и деца, зашто ненамерно им се појавивме во нивните мирни домови без да побараме дозвола. Се извинуваме што им ги жигосавме отсечените делови од нашето тело во снежнобелото сеќавање, зашто ја испоганивме сликата за нормалното, целосно човечко битие во нивните очи, зашто бевме безобразни ненадејно да им скокнеме на вестите и на страниците на интернет и во печатот, голи со исклучок на нашата крв и гламносани остатоци. Им се извинуваме на сите оние кои немаа храброст директно да ни ги погледнат повредите од страв да не се згрозат, и на оние на кои им преседнала вечерата откако неочекувано виделе свежи слики од нас на телевизија. Се извинуваме за сето страдање кое сме им го предизвикале на сите кои нѐ виделе такви, недотерани, без најмал обид да нѐ состават или да ни ги скрпат остатоците пред да им се појавиме пред екраните. Исто така им се извинуваме на израелските војници кои се намачија да ги притиснат копчињата во авионите и тенковите за да нѐ разнесат на парчиња и жалиме што изгледавме толку одвратно откако ги вперија гранатите и бомбите право во нашите меки глави и за саатите што сега ќе ги поминуваат во психијатриски клиники, обидувајќи се повторно да се очовечат, ко што биле луѓе пред нашата преобразба во гадни делови од тело што ги прогонува кога и да пробаат да заспијат. Ние сме нештата што ги гледате на екраните и во печатот, а ако се потрудите да ги составите делчињата, како сложувалка, би добиле јасна слика за нас, до толку јасна што ништо не би можеле да направите.
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4.
ΕΜΕΙΣ

Εμείς, τα σκόρπια θραύσματα και η βροχή από σάρκες, προσφέρουμε τη βαθύτατη απολογία μας στον καθένα από τούτο τον πολιτισμένο κόσμο, στον καθένα χωριστά, άντρα, γυναίκα και παιδί, γιατί άθελά μας μπήκαμε στα φιλήσυχα σπίτια τους χωρίς να ζητήσουμε την άδεια, απολογούμαστε που αφήσαμε ίχνη από τα κομμάτια μας πάνω στις λευκές σαν χιόνι αναμνήσεις τους, γιατί προσβάλαμε την εικόνα του αρτιμελή, φυσιολογικού ανθρώπου στα μάτια τους, γιατί ξεδιάντροπα τρυπώσαμε στα ξαφνικά μες στα δελτία ειδήσεων, τις διαδικτυακές σελίδες και τα φύλλα των εφημερίδων, γυμνοί, ντυμένοι μοναχά το αίμα μας και της καρβουνιασμένης σάρκας μας τ' απομεινάρια, απολογούμαστε σ' όλα τα μάτια που δεν τόλμησαν να κοιτάξουν κατάματα τις πληγές μας για μην τα βρει η φρίκη, απολογούμαστε σε όποιον δεν μπόρεσε ν' αποτελειώσει το δείπνο του όταν απρόσμενα αντίκρισε πρόσφατες φωτογραφίες μας στην τηλεόραση, απολογούμαστε για την οδύνη που προκαλέσαμε σε όποιον μας είδε έτσι, πληγές ανοιχτές κι απεριποίητες, απομεινάρια και κομμάτια που δεν συγκολλήθηκαν πριν βγούμε στις οθόνες, απολογούμαστε επιπλέον στους Ισραηλινούς στρατιώτες που ανέλαβαν το βαρύ έργο να πατήσουν τα κουμπιά στα αεροσκάφη και τα τανκς τους για να μας κομματιάσουν, απολογούμαστε σ' εκείνους για την απεχθή εικόνα στην οποία μετατραπήκαμε αφού έριξαν τις βόμβες τους κατευθείαν πάνω στα τρυφερά μας κεφάλια και για τις ώρες που θα περάσουν τώρα στους ψυχιάτρους για να ξαναγίνουν άνθρωποι, όπως ήταν πριν καταντήσουμε αποτρόπαια μέλη που τους κατατρέχουν κάθε φορά που προσπαθούν να κοιμηθούν, είμαστε τα πράγματα που είδατε στις οθόνες και τις εφημερίδες κι αν προσπαθήσετε να βάλετε μαζί όλα τα κομμάτια όπως συνθέτουμε ένα παζλ, θα αποκτήσετε μια ξεκάθαρη εικόνα για μας, ξεκάθαρη σε τέτοιο βαθμό που δεν θα μπορείτε πλέον να κάνετε απολύτως τίποτα.
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5.
جبل قاسيون

لى أنيش كابور

كان جبلاً صغيراً، يشبه غيمة، ويطل على لا شيء، كان عالياً مثل عصفور، كبيراً مثل شجرة، وكان وحيداً جداً، فقبل اختراع الموبايل كانت الجبال تتراسل بالطيور، لكي لا تموت الذكريات.

لقد كان جبلاً صغيراً، يحلم بالمدينة، ويفضل الازدحام، لكنه ظلَّ وحيداً جداً، فالجبال قبل ثلاثين زلزالاً كانت لا تزور بعضها البعض، بسبب خلافات عائلية.

جبلاً صغيراً، وكان الشعراء يظنونه صخرة سقطتْ من قرن الثور، ولكن صدفةً حدثت في موسم الصيد، جعلتهم يكتشفون أنَّ الجبل أنثى. في موسم الصيد، في السنة التي لم يكتشفها علماء الأركولوجيا بعد، كان الشعراءُ يلاحقون قصيدة حين غافلتهم والتجأت إلى كهف في سفح ذلك الجبل، دخلوا وراءها، ما كانوا يعلمون أنهم دخلوا فرج الجبل، لقد كانت أول عملية جماعٍ بين بشر وجبل، أنجبت مدينة، أسماها اللغويون البداية، والشعراء سموها دمشق، إنها ابنة الزنا الحلال، إنها أول المدن.

في اللحظة التي يسقط فيها جبل بامتحان الفيزياء، يتثائب جبل آخرٌ، وتنام المدينة، كأن شيئاً لم يكن، كأن كل شيءٍ كان، من قال أن جبلين لا يلتقيان، سأصحح لكم العبارة: إن لم يذهب محمد إلى الجبل، فإن الجبل سيأتي إليه، لا، سأصحح العبارة ثانيةً: إن لم يذهب كابور إلى الجبل، فإن الجبل سيأتي إليه.
٢٠١٢
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6.
La montagne Qassioun


C'était une petite montagne qui ressemblait à un nuage et qui ne surplombait rien. Aussi haute qu'un oiseau dans le ciel, aussi grande qu'un arbre, elle était pourtant très solitaire, car avant l'invention du téléphone mobile, les montagnes communiquaient par le biais des oiseaux pour que les souvenirs survivent.
C'était une petite montagne qui rêvait de la ville et qui avait une prédilection pour la foule, elle était pourtant très solitaire, car, avant les trente derniers séismes, les montagnes ne se rendaient pas visite, pour cause de querelles familiales.
C'était une petite montagne que les poètes prenaient pour un rocher tombé d'entre les cornes d'un taureau. Mais un concours de circonstances, survenu pendant la saison de la chasse, leur fit constater que la montagne était du genre féminin. Cela s'était déroulé au cours de l'année que les archéologues n'avaient pas encore explorée, les poètes pourchassaient un poème qui s'était hâté de se réfugier dans une grotte sur le flanc de cette montagne. Ils se précipitèrent derrière lui, sans se rendre compte qu'ils pénétraient ainsi dans le vagin de la montagne. Ce premier accouplement entre des êtres humains et une montagne engendra une ville que les linguistes appelèrent « Commencement » et que les poètes nommèrent « Damas ». Elle est la fille légitime/illégitime. Elle est la première ville.
A l'instant où une montagne échoue à son examen de physique, une autre montagne se met à bâiller et la ville sombre dans le sommeil comme si de rien n'était, comme si tout était. Qui a dit que deux montagnes ne se rencontraient jamais ? Je vais reformuler la sentence à votre intention : si Mahomet ne va pas à la montagne, la montagne ira à lui… Non… Non… Je vais plutôt dire : si Kapoor ne va pas à la montagne, la montagne ira à lui.

Traduction Rania Samara
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7.
Schizophrenie

Ypern:
Durch die Stadt Ypern, so mittig in den flandrischen Feldern gelegen wie ein der Welt entgegengestreckter Mittelfinger in der Mitte der Hand ..., durch die Stadt Ypern, die im Ersten Weltkrieg von der Landkarte getilgt wurde wie das palästinensische Volk aus den Schulbüchern und der Geschichtsschreibung ..., durch die Stadt Ypern - ich bin unsicher, was poetischer und treffender ist: zu sagen, hundert Jahre nach ihrer Zerstörung oder hundert Jahre nach ihrem Wiederaufbau ..., durch die Stadt Ypern, wo du deine Hand auf die Geschichte legen kannst, die wie eine Leiche vor dir liegt, wo du die Wunde berühren kannst, um festzustellen, dass sie noch immer heiß ist wie die Brustwarze einer Frau, die zwischen deinen Lippen schmilzt ..., durch die Stadt Ypern gehe ich, der palästinensische Flüchtling, der bis vor kurzem aus allen Büchern, Nachrichtenmeldungen, Akademien und Studien getilgt war, weil, wie wir alle wissen, Palästina ein Land ohne Volk ist ... hahaha ...
Auf jeden Fall: Ich, der palästinensische Flüchtling, der in dieser zivilisierten Welt nicht existiert, bewege mich wie ein Archäologe, der in Begleitung einer kolonialistischen Expedition, die, die halbe Erdkugel hinter sich lassend, den Ozean überquerte, um aus der Nähe die Grausamkeit des Homo sapiens zu spüren und den Rausch der Bestätigung zu erleben, dass Hannah Arendt recht hatte, als sie die Banalität des Bösen betonte. Ich, der syrisch-palästinensisch-schwedische Flüchtling, trage eine Jeans der Marke Levi's, die ein jüdischer Flüchtling aus Deutschland in San Francisco erfunden hat, und fülle meine Kamera mit Fotos wie eine russische Bäuerin den Milcheimer unter ihrer Kuh. Ich nicke mit dem Kopf wie jemand, der die Lektion verstanden hat, die Lektion vom Krieg: Ich, der Palästinenser, der auf mehrere Massaker verteilt ist, ich stehe nackt hier und versuche, mein Gedicht anzulegen, damit es meine Wunden verbergen möge. Verunsichert sammele ich meine Einzelteile hier und dort auf, um Zeuge zu sein, ich, der - laut Klischees und Stereotypen - brutale Palästinenser, der aus einem Land kommt, das, wie die Orientalisten behaupten, für den Krieg bekannt ist. Hier stehe ich nun vor euch, mit einem Gefühl von großer Scham, ja gewiss, von großer Scham angesichts der Bedeutungslosigkeit der Kriege in meinem Land im Vergleich zu den großen Kriegen in eurem; der kleinen nichtigen Kriegen angesichts eurer hoch entwickelten Kriegsmaschinerie, die alles niederwalzt; angesichts eurer raffinierten Waffen, die den Krieg in Kunst verwandelt; angesichts eurer vielfarbigen Kriege, die niemanden verschonen; angesichts eurer großartigen Massaker, ihr weißen Männer.


In der Stadt Ypern, mitten in den flandrischen Feldern gelegen wie der Nahe Osten im Zentrum der Krisen, verwandelt sich das schwere Erbe des Krieges in erfolgreichen Tourismus. Alles fällt der Verjährung anheim, außer in Ypern. Hier wächst das Gedächtnis des Krieges im Laufe der Zeit, wo die Erinnerung an den Krieg die Touristen frisst und wächst, die Veteranen frisst und wächst, die Erzähler und die Enkel der hier getöteten Männer frisst und wächst, das Gedächtnis jener frisst, die noch nicht geboren wurden und wächst wie wilder Wein. Die restlichen Waffen, die in den Feldern gefunden wurden, werden in den Schaufenstern der Läden und Cafés ausgestellt. Überall sind Schwarz-Weiß-Bilder von Kämpfern mit Schnauzbärten, so spitz wie eine Messerklinge, zu sehen. Alles in der Stadt hat eine Beziehung zum Tod. Das Grabmal des Unbekannten Soldaten gleicht einer offenen Wunde, die Musik, die seit mehr als achtzig Jahren jeden Abend gespielt wird, gleicht einer nicht stoppenden Blutung. Die Felder, die die Erinnerungen der hier - aus für sie unbekannten Gründen - ermordeten Männer bewahren. Die armen Seelen, die nach dem Krieg geboren wurden und seinen Schrecken nicht erlebten, werden verfolgt von den unzähligen Geschichten, die sie hörten, und wenn du genau hinschaust, wirst du eine große Hoffnung in ihren Augen sehen, dass ein anderer Krieg kommen werde, eine Gewissheit, dass dies geschehen werde, eine entschiedene Gewissheit, zu der sie durch ihr Wissen über das menschliche Geschlecht gelangt sind, und das ist das einzige, was sie im Gleichgewicht hält.


Anmerkung 1
In den Vereinigten Staaten wurde er als der Europäische Krieg bezeichnet, und abgesehen von Europäern kamen auch Asiaten, Afrikaner und Amerikaner darin um. In Europa wurde er der Große Krieg genannt, aber nichts an ihm war groß, und man hatte nicht damit gerechnet, dass man seinen Namen später, als der Zweite Weltkrieg begann, in Ersten Weltkrieg werde ändern müssen. Bis zu jenem Moment war die Welt naiv romantisch gewesen, und niemand hatte erwartet, dass zwei Jahrzehnte nach Ende dieses spontanen Tanzes eine Diskothek für alle ihre Türen öffnen würde. Und niemand hatte Marx geglaubt, als er darauf hingewiesen hatte, dass die Geschichte sich selbst wiederhole, das eine Mal als Tragödie, das andere Mal als Farce, was in Wahrheit sehr dem ähnelt, was in Europa geschah: die Tragödie des Ersten Weltkriegs und der Karneval des Zweiten.


In der Stadt Ypern, in der dich die Geschichte mit zwei eisernen Augen ansehen kann und den Zipfel deines Hemdes mit schlaffer Hand hält, wo dir die letzten hundert Jahre durcheinander geraten, so dass du nicht mehr weißt, wo du bist, wo Männer mit flügelähnlichen Schnauzbärten zufrieden in den Tod gingen, sechshunderttausend Männer in den Feldern verstreut wurden, in der Erde schmolzen, deren Erinnerungen durch Zersetzung in den Boden sickerten, in das Gemüse und in die Milch der Kühe und die Mohnblumen eindrangen, Erinnerungen, die die Ebenen mit Niedergeschlagenheit besudelten und mit einem dunklen Gefühl, das die vorbeikommenden Frauen mit einer unerwarteten Lust trifft. Die Ehemänner interpretieren es als Frühlingsallergie und die Dichter als Déjà vu. Männer mit flügelähnlichen Schnauzbärten lasen mein Gedicht, bevor ich es geschrieben hatte, und lenkten sich mit dem Drehen ihrer Zigaretten ab. Ich sah, wie einer von ihnen seinen Finger in die Wunde seines Freundes legte, und erinnerte mich an den Apostel Thomas, und er sah mich und erinnerte sich an sich selbst. Männer mit flügelähnlichen Schnauzbärten sind noch immer dort; nachdem ein Jahrhundert vergangen ist, sind sie noch immer dort, ihre Mütter haben genug vom Tod, und sie sind noch immer dort, ihre Geliebten sind alleine alt geworden, mit anderen Männern, und sie sind noch immer dort, verhaftet in der Raumzeit, die Schuhe im Schlamm steckend, ihre Gewehre verrostet, die Munition vom Wasser verdorben, und das Chlorgas breitet sich weiter und weiter aus, bis es Damaskus erreicht. In der Stadt Ypern kann die Geschichte dich mit eisernen Augen ansehen, Vergangenheit und Gegenwart mischen sich mit Gas, das Gas mischt sich in den Lungen jener, die hier gestorben sind, und mit dem Gas in den Lungen jener, die ein Jahrhundert später in den Vorstädten von Damaskus sterben. Niemand hat die Lektion gelernt, niemand wird sie lernen.


Anmerkung 2:
Der deutsch-jüdische Chemiker Fritz Haber entdeckte den Dünger zweimal, das erste Mal, als er Stickstoff und Wasserstoff mischte, um Explosivmittel herzustellen. Er hatte versucht, eine neue Methode für das Töten einer größtmöglichen Anzahl von Menschen zu erfinden, und so erfand er das Ammoniak, das für das Düngen von Feldern verwendet wurde, rettete Millionen Menschen vor dem Hunger und erhielt den Nobelpreis für Chemie, hahahah ... Das zweite Mal, als er das Chlorgas entdeckte und damit den Erstickungstod von Tausenden Soldaten verursachte, deren Körper zu Dünger für Flanderns Felder wurden.


Anmerkung 3:
Am 22. April 1915 schossen die Deutschen in Anwesenheit von Fritz Haber 5.730 mit Chlorgas gefüllte Zylinder auf die Soldaten der Alliierten in Flanderns Feldern. Tausende erstickten. Die Ehefrau Habers, Clara Immerwahr, selbst eine deutsch-jüdische Chemikerin, beging einige Tage nach dem Angriff aus tiefem Widerstand gegen die Rolle ihres verwerflichen Mannes bei der Produktion von Chemiewaffen Selbstmord. Nach ihrem Suizid verließ Haber am nächsten Morgen das Haus, um den ersten Chemiegasangriff gegen die Russen an der Ostfront vorzubereiten.


Anmerkung 4:
Später setzte Haber seine Forschungen fort und versuchte den Deutschen zu beweisen, dass er Deutscher sei. Zu seinen Studien gehörte eine Arbeit, die die Tür zu einer der schlimmsten Entwicklungen der Geschichte öffnete, das Zyklon-A-Gas, das später zu Zyklon B wurde und das die Nazis während des Zweiten Weltkriegs zur Vernichtung der größtmöglichen Anzahl von Juden in den Gaskammern benutzten - unter ihnen auch einige Verwandte von Fritz Haber.

Anmerkung 5:
Im Jahr 1933 verließ Fritz Haber Deutschland wegen der nationalsozialistischen Gesetze gegen die Juden in Richtung England. Er starb im Jahr 1934 während einer Reise in einem Hotel in Basel, als er auf dem Weg nach Palästina war, um dort für ein britisches Forschungsinstitut zu arbeiten.


In Ypern täuscht dich anfänglich die Schönheit der Natur, und du frisst den Köder. Du wirst getäuscht durch den Frieden, der vermischt ist mit Gräsern auf dem Feld, das sich die Gräben entlang zieht. Der gerechte Friede, er kriecht auf dich zu, seine Hand hält das Messer unter seinem Mantel versteckt. Der erste Stich wird dich nicht überraschen, der zweite schon, dich wird die Monotonie des Todes überraschen; die überaus langweilige Wiederholung von im Laufen fallenden Männern, stolpernd, durch eine Kugel, die Monotonie der Lektionen, die niemand gelernt hat außer jenen, die gestorben sind, wird dich überraschen; die Ästhetik der Schlacht wird dich überraschen; der Rhythmus der Kanonen, die Farben, die mit jeder Granate, die den Boden küsst, auffliege ; das Klingen im Ohr, die Musik des Metalls, die die Nationalhymne des Todes spielt, das Orchester der Herzschläge. Die Chance ist groß, die Unbarmherzigkeit des Menschen zu entdecken und die Zartheit des Eisens.


Ypern, Stadt, die du ein großes Grab verbirgst, du kollektiver Friedhof, der du die Maske einer Stadt trägst, ich weiß nicht, was ich sagen soll, aber ich bin sicher, dass wir kein anderes Grab brauchen für den Unbekannten Soldaten. Glaub mir, wir brauchen ein Grab für den Unbekannten Busfahrer, jenen Auswanderer aus Chile, der einsam in seinem Bett starb und den niemand vermisst; oder ein Grab für den Unbekannten Falafelverkäufer, der satt im Süden geboren wurde und hungrig im Norden starb. Wir brauchen ein großes Grab für die Unbekannten Frauen, deren Blut aus den Ritzen der Mauern der Wohnungen sickert und das wir versuchen zu übertünchen; deren mattes Stöhnen wir in den ruhigen Sommernächten hören und so tun, als seien wir mit etwas anderem beschäftigt; die die Geschichte auf den Zehenspitzen durchschreiten, um die Bestie nicht zu wecken; die schweigend litten, weil sie glaubten, Gott würde zornig werden, wenn sie Nein sagten; die gefressen wurden vom Patriarchen, auf dass wir uns mit absolutem Schweigen begnügten, weil wir feige sind.


Es war der erste weltweite Tanz, eine Einladung an alle, der Tanzsaal war ins Freie hin geöffnet, es wurde spontan musiziert. Der Lauf des Gewehrs fiel herunter, und hundert Jahre später wird ihn ein Bauer finden und ihn für eine Flöte halten. Die Zähne eines jungen Soldaten fielen durch den Splitter eines Schmetterlings und niemand wird sie finden. Eine Granate fiel auf einen Friedhof, so dass die Soldaten ein zweites Mal getötet wurden. Die Träume jener fielen, die glaubten, dass sie zurückkehren würden, aber es kehrten nur kleine Eisenteile mit ihren darauf eingravierten Namen zurück. Der Erste Welttanz. Eine Stadt fiel durch eine fehlgeleitete Kugel, alle Tänzer fielen, alle, die Musikanten fielen, der auf dem Baum sitzende Vogel fiel, der Baum fiel, und Newtons Apfel blieb in der Luft hängen. Hier gibt es keine Anziehungskraft, nur der Lehm hält die Schuhe der Soldaten fest. Und ich, der einzige Überlebende dieses famosen Massakers, ich, der Zeuge, der zu spät kam, ich betrachte in aller Ruhe die Grabsteine. Meine Bestürzung über ihre Normalität gleicht ihrer Bestürzung über einen unerwarteten Besucher, einen Zeugen aus einem Land, dessen Bewohnern es nicht erlaubt ist, Zeugnis abzulegen; einem Opfer, das die Gräber von Opfern besucht.
- Bist du hergekommen, um aus den Lektionen der westlichen Zivilisation über die Art des Tötens einer größtmöglichen Anzahl von Männern mit den modernsten Mitteln, die die Zivilisation zu bieten hat, zu profitieren?
- Nein.
- Bist du hergekommen, um von der Erfahrung des sinnlosen Todes von sechshunderttausend Männern zu lernen, die zum Dünger für Mohnblumen wurden.
- Nein.
- Sollst du eine neue Methode zum Recyceln der Soldaten entdecken, so dass man sie ein zweites Mal verwenden kann, in anderen Kriegen?
- Nein.
- Bist du hier, um das Töten zu lernen?
- Nein. Ich bin hier, um den Tod kennenzulernen.


Damaskus:
Ich ging in den Tod, als mich die Kämpfer anhielten. Sie durchsuchten mich und fanden mein Herz an Ort und Stelle. Sie hatten schon lange kein Herz mehr bei seinem Besitzer gesehen. Einer von ihnen schrie: „Der lebt noch!", und so verurteilten sie mich zum Leben. Ich sah weiß gekleidete Frauen, die aussahen wie Krankenschwestern, aber sie schwebten in der Luft. Die Morphiumspritzen nahmen mich mit zu Kämpfern anderer Art, wo die Bäume blau waren und das Wasser grün wie die Orange. Ich sah weiß gekleidete Frauen, die mich anschauten und in die Abwesenheit eintraten. Die Morphiumspritzen führten mich in die Korridore, die zwischen Damaskus und Stockholm liegen, und so finde ich mich plötzlich wieder, wie ich dasitze und auf den Bus warte. Ich denke an Länder, in denen die Menschen im Kreis ihrer Familie im Bett sterben und wo es nicht überall Werbung für Coca Cola und Bilder von dünnen nackten Frauen gibt. Ich träume, dass ich einen blauen Mond in der Hand halte und dass die Straße grün ist, dass ich im Juli auf dem Balkon einer Wohnung, die vom Kassjun-Berg auf Damaskus blickt, kaltes Wasser trinke, dass mein Herz bei mir ist und dass meine Freunde noch am Leben sind, dass wir uns abends im Restaurant Normandie treffen und danach, wenn wir pleite sind, durch die Gassen der Altstadt schlendern, dass ich widerspenstig bin und das Gedicht mir zur Seite gegen die Geschichte steht. Ich träume von Frauen - mein Gott, wie sehr liebe ich die Frauen! Von den Frauen habe ich mehr gelernt als in der Schule, vom Krieg habe ich mehr gelernt als vom Frieden. Und ich kann euch versichern, dass viele Soldaten zu Kriegsverbrechern werden und viele Dichter zu Friedensverbrechern und dass gute Nachrichten im Krieg bedeuten, dass es keine schlechten Nachrichten gibt, und dass jene, die den Krieg verloren haben, die Toten sind, auf beiden Seiten, und dass der Krieg in seiner Kindheit das Blut der Soldaten saugt, und dass er, wenn er älter wird, ihre Stiefel auf kleinem Feuer grillt, und dass er stirbt, wenn sie leben.


Anmerkung 6:
Ich denke an Palästina, das Land, das Gott erfand und in dem in Seinem Namen Millionen Seelen gemordet wurden; das Land von Milch und Honig, in dem es weder Milch noch Honig gibt; das heilige Land, für das wir heilige Kriege führten, in denen wir heilige Niederlagen erlitten und aus dem wir heilig flohen, für das wir in heiligen Flüchtlingslagern lebten und für das wir einen heiligen Tod starben. Wenn ich daran denke, verfolgt mich die Stimme des Scheichs, der, wann immer ich ihn fragte, einen Koranvers zur Antwort gab: „Oh ihr, die ihr glaubt! Fragt nicht nach Dingen, die euch, wenn sie euch enthüllt werden, betrüben ..." Und ich frage mich noch immer: Was von beiden ist weiter von der Erde entfernt, der Jupiter oder die Zweistaatenlösung? Was ist meiner Seele näher? Ein Soldat aus meinem Land oder ein Dichter aus den Reihen meines Feindes? Was ist das Schlimmste, was Alfred Nobel schuf? Das Dynamit oder der Nobelpreis?


Stockholm:
Also gut, ich bin jetzt in Stockholm, ich genieße den Luxus eines Landes, das seit zweihundert Jahren keinen Krieg geführt hat, wo alles in aller Stille geschieht, die Freude, die Trauer, der Wahnsinn, sogar die Brutalität findet in aller Stille statt. Aber statt am Stockholm-Syndrom zu erkranken, bin ich am Damaskus-Syndrom erkrankt, doch das ist eine andere Geschichte, die in einem anderen Gedicht erzählt werden muss, weil es sie überhaupt nicht gibt. Von Bedeutung ist, dass ich mich nicht mehr für unwichtige Details interessiere. Die Nummer des Busses, der zu deinem Haus fährt, habe ich mir immer noch nicht gemerkt, und trotzdem komme ich jedes Mal bei dir an und schlüpfe neben dir ins Bett. Ich kann mich nicht mehr daran erinnern, wie dein Körper mein Verständnis von den Orten und Richtungen verändert hat. Eigentlich weiß ich gar nicht genau, wo diese Wohnung liegt. Sie ist irgendwo auf dem Stadtplan, ich benutze kein GPS für die Liebe. Die Tatsache, dass es den Weg zu deiner Wohnung besser kennt als ich, ärgert mich. Ich liebe dich mit mörderischer Ruhe, ich falle aus höchster Höhe zu dir, aber langsam, sehr langsam, wie in Zeitlupe. Ich falle in deine Liebe, einfach so, wie die Soldaten durch eine Kugel fallen, wie die Preise an der Börse fallen, wie die rassistischen Trennmauern fallen, wie die belagerten Städte fallen.
Ich erinnere mich daran, wie es begann, als ich dich im Theater aß, als ich mich in dir verlor und die Passanten Mitleid mit mir hatten; als aus deiner Tasche ein Apfelbaum fiel und wir bloßgestellt waren; als die Sexualität die Situation beherrschte und ich feindselig wurde wie eine Wanduhr in einem Wartesaal.
Ich habe die kaputte Glühbirne in deinem Hausflur nicht ausgewechselt, wie ich es dir vor einem Jahr versprach, aber ich habe meinen Glauben an die westliche Welt geändert, und eine andere Frau wird mich - hoffentlich - in der Zukunft ein weiteres Mal ändern.
Ich schlüpfe neben dich, du stellst dich schlafend, aber ich rieche die Sexualität, weil sich deine Brustwarzen aufrichten, und ich weiß, dass du lügst. Du lügst und möchtest, dass ich die Initiative ergreife und dich verschlinge. Denn das befriedigt den orientalistischen stereotypen Blick auf den Orient im Allgemeinen und einen arabischen Mann im Besonderen, den die langen Jahre des Kolonialismus hinterlassen haben. Aber ich enttäusche deine Hoffnungen mit all meiner beduinischen Bosheit und lasse meine armen Lämmer frei, damit sie vor deinem hungrigen Wolf weiden, und ich warte und warte und warte ... Der Wolf deiner Lust enttäuscht meine Erwartungen nicht, er zerreißt das Fleisch meiner Lämmer auf einem weißen Bett, das einer schwedischen Eiswüste gleicht. Der Duft deiner Brust verbindet sich mit dem gelben Licht deines Zimmers und lässt ein Schlaflosigkeitsdioxid entstehen. Ich schwitze so sehr, dass mir die arabischen und schwedischen Gedichte durcheinandergeraten, ich interessiere mich nicht mehr für nebensächliche Details, eine Stadt, in der du nicht lebst, interessiert mich genauso wenig wie ein Land, in dem du nicht bist.


Anmerkung 7:
Der Weg nach Damaskus ist voller Erinnerungen. Ich bin erschöpft, seit das Flüchtlingslager mich mit der Trockenmilch der Vereinten Nationen stillte und mir ein Flüchtlingsleben aufbürdete. Der Weg nach Damaskus, das ich im Jahr 2008 verließ, reizt mich nicht mehr. Nachdem ich von der Freiheit gekostet habe, kann ich mich nicht mehr hinter der Metapher verstecken, um mich vor den Spitzeln zu retten.
Der Weg nach Ypern ist mit Leichen asphaltiert, und ich bin erschöpft, seit mich meine Cousins ermordeten und mich den Vögeln zum Fraß überließen.
Der Weg nach Stockholm ist wegen erhöhten Schneeaufkommens geschlossen.
Der Weg in den Krieg ist ruhig. Es gibt eine kleine Raststätte, an der jene absteigen, die auf dem Weg zum Massaker sind. Sie ruhen sich ein wenig aus, versorgen sich mit Wasser, trinken Tee und sprechen über die Gründe des systematischen Todes. Am nächsten Morgen setzen sie ihren Weg fort, um mithilfe von Patronenkugeln zu diskutieren, und ich bleibe zwischen den Widersprüchen hängen, ich, der Zeuge, der zu spät kam, und der Tote, der nicht ankam, der Mörder und der Getötete, der Verbrecher und das Opfer. Ich, der rote Indianer, der blaue Indianer, der grüne Indianer. Der schwarze Palästinenser. Dieser Krieg braucht ein Gedicht, damit die Metapher nicht tot geboren wird, damit der Tod nicht schwer wiegt wie eine Kanone aus Bronze, die auf der Geschichte lastet. Der Tod kann mir keine Heimat schenken, und wenn er es täte, so wollte ich sie nicht. Ypern war ein Albtraum, der vor hundert Jahren ein Ende fand, und Damaskus ist ein Albtraum, der jetzt stattfindet, und ich hänge in Stockholm fest. Die Gedichte, die ich in Damaskus schrieb, wurden von den Soldaten ermordet, und die Gedichte, die ich in Ypern geschrieben habe, sind nicht mit mir ins Flugzeug gestiegen, und die Gedichte, die mit mir in Stockholm wohnen, leiden unter einem gehörigen Mangel an Vitamin D.


Ypern:
Der Krieg ist hinter der Tür.


Damaskus:
Um drei Uhr morgens fallen Raketen mit Saringas auf einige dicht bevölkerte Vororte von Damaskus. Die Augen verengen sich, der Blick wird weit, die Kinderkörper erbeben gleichmäßig, erbeben stark, es ist ein Erdbeben anderer Art, bei dem die Häuser unversehrt bleiben und die Körper erzittern. Es ist ein moralisches Beben, das die Welt befällt.


Stockholm:
Die Stadt ist ruhig.
...

8.
شيزوفرينيا

إيبر:
في مدينةِ إيبر التي تتوسطُ حقولَ الفلاندرز كما تتوسطُ إصبعٌ وسطى مرفوعةٌ في وجه العالم كف اليد، في مدينةِ إيبر التي مُسِحَتْ في الحربِ العالميةِ الأولى عن الخارطةِ كما مُسحَ الشعبُ الفلسطينيُّ من كتبِ المدارسِ وسجلاتِ التاريخ، في مدينة إيبر ولستُ متأكداً أيُّهما أكثر شاعريةً ومناسبةً للسياق، القولُ بعدَ مئةِ عامٍ على دمارها، أم بعدَ مئةِ عامٍ على إعادةِ إعمارها، في مدينةِ إيبر حيثُ تستطيعُ أنْ تضعَ يدكَ على التاريخِ الممدَّدِ أمامكَ كجثةٍ، أنْ تلمسَ الجرحَ لتكتشفَ أنَّه لا يزالُ ساخناً كحلمة امرأةٍ تذوبُ بين شفتيكَ، أتمشى أنا اللاجئُ الفلسطينيُّ الذي كان حتى فترةٍ وجيزةٍ محذوفاً من جميعِ الكتبِ والأخبارِ والأكاديمياتِ والتحقيقاتِ، فجميعنا يعلمُ أنَّ فلسطين أرضٌ بلا شعبٍ… هههههه …
على أيةِ حال، أنا اللاجئُ الفلسطينيُ الذي لم يكنْ له وجودٌ في هذا العالمِ المتحضرِ، أتمشى مثل أركولوجيٍ جاءَ برفقةِ بعثةِ استكشافٍ استعماريةٍ من وراءِ المحيطِ، قاطعاً نصفَ الكرةِ الأرضيةِ ليلمسَ عن كثبٍ وحشيةَ الهوموسيبيان، وليستمتعَ بنشوةِ إثباتِ أنَّ حنه أرندت كانت على حقٍ حين أكدتْ على عاديةِ الشرِّ. أنا اللاجئُ الفلسطينيُّ السوريُّ السويديُّ، أرتدي جينزاً ماركة ليفايز ابتكرَهُ مهاجرٌ يهوديٌ من ألمانيا في سان فرانسيسكو، وأملأُ كاميرتي بالصورِ كما تملأُ فلاحةٌ من روسيا سطلَ الحليبِ تحتَ بقرتها، هازَّاً رأسي بالإيجابِ كمن استوعبَ الدرسَ، درسَ الحربِ، أنا الفلسطينيُّ الموزعُ على عدةِ مجازرَ، أقفُ هنا عارياً، محاولاً أنْ ألبسَ قصيدتي علَّها تُخفي جراحي، متلبكاً ألملمُ قطعي من هنا وهناك، لكي أكونَ شاهداً، أنا الفلسطينيُّ العنيفُ حسبَ الكليشيهات والصور النمطية، القادمُ من بلادٍ مشهورةٍ بالحروبِ كما يدَّعي المستشرقون، ها أنا أجدُ نفسي واقفاً أمامكم، ينتابني شعورٌ بالخجل الشديدِ، نعم، بالخجلِ الشديدِ من ضآلةِ الحروبِ التي وقعتْ في بلادي أمامَ الحروبِ العظيمةِ التي وقعتْ في بلادكم، حروبُ بلادي الصغيرةُ التافهةُ أمامَ آلةِ حروبكم الضخمةِ المتطورةِ التي تطحنَ الأخضرَ واليابسَ، أمامَ أسلحتِكم المبدعة التي حولتِ الحربَ إلى فنٍ، أمامَ حروبِكم الملونةِ التي لا تبقي ولا تذر، أمامَ مجازرِكم الرائعةِ أيُّها الرجالُ البيض.

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في مدينةِ إيبر التي تتوسطُ حقولَ الفلاندرز كما يتوسطُ الشرقُ الأوسطُ المشاكلَ، يتحولُ إرثُ الحربِ الثقيلِ إلى سياحةٍ ناجحةٍ، كلُّ شيءٍ يسقطُ بالتقادمِ، إلا في إيبر، هنا ذاكرةُ الحربِ تنمو مع مرورِ الوقتِ، حيثُ ذكرى الحربِ تأكلُ السياحَ وتكبرُ، تأكلُ المحاربين القدماءَ وتكبرُ، تأكلُ الحكائين وأحفادَ الرجالِ الذين قُتلوا هنا وتكبر، تأكلُ ذاكرةَ الذين لم يولدوا بعدُ وتنمو مثل عريشةِ عنبٍ، بقايا الأسلحةِ التي وُجدتْ في الحقولِ تُعرضُ على واجهاتِ المحلاتِ والمقاهي، صورُ المقاتلينَ بالأسود والأبيضَ بشواربَ مدببةٍ تشبهُ نصلَ السكين تجدُها في كلِّ مكانٍ، كلُّ شيءٍ في المدينةِ متصلٌ بالموتِ، قبرُ الجنديِّ المجهولِ يشبهُ جُرحاً م شفتوحاً، الموسيقى التي تُعزفُ كلَّ مساءٍ منذُ أكثر من ثمانين عاماً تشبهُ نزفاً لا ينقطعُ، الحقولُ التي تحوي ذكرياتِ رجالٍ قتلوا هنا لأسبابَ لا يعرفُونها، وهؤلاء المساكينُ الذين ولدوا بعدَ الحربِ ولم يشهدوا روعتها، الذين تلاحقهم حكاياتُها لكثرةِ ما سمعُوها، الذين تَرى في عيونهم ـ إنْ أنتَ دقَّقتَ قليلاً ـ أملاً كبيراً أنَّ حرباً أُخرى ستقعُ، ويقيناً أنَّ ذلك سوفَ يحدثُ، يقيناً قاطعاً حصلوا عليهِ من خلال معرفتهم بالجنسِ البشريِّ، وذلكَ هو الشيءُ الوحيدُ الذي يبقيهم متوازنين.

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هامش 1:
سُميتْ في الولاياتِ المتحدةِ بالحربِ الأوروبيةِ، فماتَ فيها إلى جانبِ الأوروبيينَ أسيويونَ وأفارقةٌ وأميريكيون، وسُميتْ في أوروبا الحرب العُظمى، لكنْ لم يكنْ أيُّ شيءٍ فيها عظيماً، ولم يتوقعوا أنَّهم سيضطرون إلى تبديلِ الإسم لاحقاً من الحربِ العظمى إلى الحربِ العالميةِ الأولى حين تبدأُ الحربُ العالميةُ الثانية، فحتى تلكَ اللحظة كانَ العالَمُ رومانسياً ساذجاً، لم يكن أحدٌ يتوقع أنَّ هنالكَ ديسكو جماعي سيبدأُ بعدَ عقدينِ من نهايةِ هذه الرقصةِ العشوائيةِ، ولم يكنْ أحدٌ يصدقُ ماركس حين أكَّد أنَّ التاريخَ يكرِّرُ نفسَهُ، في المرةِ الأولى يكونُ على شكلِ مأساةٍ، وفي الثانيةِ على شكلِ ملهاة، وهو يشبهُ كثيراً ما حدث في أوروبا: مأساةُ الحربِ العالميةِ الأولى، وكرنفال الحربِ العالميةِ الثانية.

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في مدينة إيبر، حيثُ يستطيعُ التاريخ أنْ ينظرَ إليكَ بعينين حديديتين، ويمسكَ طرفَ قميصكَ بيدٍ مرتخية، حيثُ تختلطُ عليكَ المئةُ سنةٍ الأخيرةُ فلا تعودُ تَعِي أين أنتَ، حيثَ سارَ رجالٌ بشواربَ تشبهُ أجنحةَ الطيرِ إلى حتفهمْ قانعين، 600 ألفِ رجلٍ تناثروا في الحقول، ذابوا في الأرضِ، تسربتْ ذكرياتُهم عن طريق التحلُّل إلى الترابِ، تسلَّلُوا إلى الخضارِ وحليبِ الأبقارِ وزهورِ الخشخاشِ، لوَّثُوا السهولَ بالاكتئابِ وبشعورٍ مُبْهَمٍ يُصيبُ النساءَ العابراتِ بشهوةٍ مفاجئةٍ، فسَّرَهُ أزواجُهُنَّ على أنَّهُ الحساسيةُ من الربيعِ، وفسَّرَهُ الشعراء على أنَّه الديجا فو، رجالٌ بشواربَ تشبهُ أجنحةَ الطيرِ، قرأُوا قصيدتي قبلَ أنْ أكتبَها، والتهوا بلفِّ سجائرهم، رأيتُ أحدَهُم يضعُ إصبعهُ في جرحِ صديقهِ فتذكرتُ توما، ورآني فتذكرَ نفسَه، رجالٌ بشواربَ تشبهُ أجنحةَ الطيرِ لا يزالون هناكَ، مرَّ قرنٌ ولا يزالون هناك، أمهاتهم شبعنَ موتاً وهم لا يزالونَ هناكَ، حبيباتهم هرمنَ وحيداتٍ مع رجالٍ آخرين، ولا يزالون هناكَ، عالقين في الزمكانِ، أحذيتُهُم عالقةٌ في الطينِ، بنادقُهُم صدئتْ، ذخيرتُهُم أفسدَهَا الماءُ، وغازُ الكلورين لا يزالُ يتمدَّدُ ويتمدَّدُ إلى أنْ وصلِ إلى دمشقَ، في مدينةِ إيبر، يستطيعُ التاريخُ أنْ ينظرَ إليكَ بعينينِ حديديتين، فيختلطُ الماضي بالحاضرِ بالغازِ، يختلطُ الغازُ في رئاتِ الذين ماتوا هنا، بالغاز في رئاتِ الذينَ ماتوا في ضواحي دمشقَ بعدَ مرورِ قرنٍ، لم يتعلمْ أحدٌ الدرسَ، لن يتعلمَ أحدٌ الدرس.

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هامش 2:
فريتز هابر، عالم الكيمياء اليهودي الألماني، اكتشفَ السمادَ مرتين، الأولى حين خلطَ النيتروجين والهيدروجين ليصنعَ المتفجراتِ، محاولاً اكتشافَ وسيلةٍ جديدةٍ لقتلِ أكبر كميةٍ ممكنةٍ من الناسِ، فاكتشفَ الأمونياك، التي استخدمتْ في تسميدِ الحقولِ، فأنقذَ ملايين الناسِ من المجاعةِ، وحصلَ على جائزةِ نوبل في الكيمياءِ، هههههه، والثانيةُ حين اكتشفَ غازَ الكلورين، فتسببَ بقتلِ آلافِ الجنودِ اختناقاً وجعلَ أجسادَهُم سماداً لحقولِ الفلاندرز.

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هامش 3:
في 22 أبريل 1915، ضرب الألمانُ بحضور فريز هابر 5730 اسطوانة من غازَ الكلورين على جنودِ الحلفاءِ في حقولِ الفلاندرز، قُتِلَ آلالافُ اختناقاً. انتحرتْ زوجةُ هابر كلارا إيمرفار التي كانتْ كيميائيةً يهوديةً ألمانيةً أيضاً بعد أيام من الهجوم بالغاز لمعارضتها الشديدة لدور زوجها المخزي في صناعة السلاح الكيميائي. في الصباح التالي لانتحارها، قام هابر بمغادرة منزله للتجهيز لأول هجوم بالغاز الكيمياوي ضد الروس في الجبهة الشرقية.

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هامش 4:
لاحقاً أكملَ هابر بحوثَهُ، كان يحاولُ أنْ يُثبتَ للألمان أنَّه ألماني، ومن ضمن بحوثهِ عمل على فتح الباب إلى واحدٍ من أسوأ الأشياء في التاريخ، غازَ الزيكلون A، الذي طُوِّرَ لاحقاً إلى زيكلون B، والذي استخدمَهُ النازيون خلالَ الحرب العالمية الثانية لإبادة أكبر كميةٍ ممكنةٍ من اليهودِ في غرفِ الغازِ، من بينهم بعض أقارب فريتز هابر.

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هامش 5:
في عام 1933 غادر فريتز هابر ألمانيا إلى بريطانيا بسبب القوانين النازية ضد اليهود، في عام 1934 وحين كان في طريقه إلى فلسطين ليعمل لحساب معهد بريطاني للعلوم، توفي أثناء الرحلة في فندق في مدينة بازل.

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في إيبر، يخدَعُكَ جمالُ الطبيعةِ للوهلةِ الأولى فتأكلُ الطُعمَ، يخدعكَ السلامُ الممزوجُ بأعشابِ الحقلِ الممتدِّ على طولِ الخنادقِ، السلامُ العادلُ، ها هو يزحفُ إليكَ، يَدُهُ التي تحملُ السكينَ يخفيها تحتَ معطفهِ، لنْ تُفاجئكَ الطعنةُ الأولى، إنَّما ستفاجئكَ الطعنةُ الثانيةُ، ستفاجئكَ رتابةُ الموتِ، التكرارُ المملُّ المملُّ لرجالٍ يسقطون خلالَ الركضِ متعثرينَ برصاصةٍ، ستفاجئكَ رتابةُ الدروسِ التي لم يتعلمْها أحدٌ سوى الذين ماتوا، سيفاجئكَ جمالُ المعركةِ، الإيقاعُ الذي تعزفُهُ المدافعُ، الألوانُ التي تتطايرُ مع كلِّ قذيفةٍ تُقَبِّلُ الأرضَ، طنينُ الأذنِ، موسيقى المعادن وهي تعزفُ النشيدَ الوطنيَ للموتِ، أوركسترا ضرباتِ القلبِ، هنالكَ فرصةٌ كبيرةٌ لتكتشفَ قسوةِ الإنسانِ، ورقَّة الحديد.

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إيبر، أيَّتُها المدينةُ التي تُخفي قبراً كبيراً، أيَّتُها المقبرةُ الجماعيةُ التي تلبسُ قناعَ مدينةٍ، حقيقةً، لا أعرفُ ماذا أقولُ، ولكنَّني واثقٌ أنَّنا لا نحتاجُ لقبرٍ آخرَ للجنديِّ المجهولِ، صدقيني، نحتاجُ قبراً لسائقِ الباصِ المجهولِ، ذلك المهاجرُ من تشيلي، ذلك الذي ماتَ وحيداً في فراشِهِ، ولم يفتقدْهُ أحدٌ، أو قبراً لبائعِ الفلافلِ المجهولِ الذي وُلدَ شبعاناً في الجنوبِ وماتَ جائعاً في الشمالِ، نحتاجُ قبراً كبيراً للنساءِ المجهولاتِ، النساءُ اللواتي تَنِزُّ دماؤُهُنَّ من بين شقوقِ جدرانِ المنازلِ فنحاولُ أنْ نُخفيها بالطلاءِ، اللواتي نسمعُ أنينهنَّ الخافتَ في ليالي الصيفِ الهادئةِ فنتظاهرُ بالشرودِ، اللواتي عَبَرنَ التاريخَ على أطرافِ أصابعهنَّ كي لا يُوقظنَ الوحشَ، اللواتي تألمنَ بصمتٍ مصدقاتٍ أنَّ اللهَ سيغضبُ إنْ قُلنَ لا، اللواتي أكلَهُنَّ البطركُ فاكتفينا بالصمتِ المطبقِ لأنَّنا جُبناء.

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إنَّها الرقصةُ العالميةُ الأولى، الدعوةُ عامةٌ، صالةُ الرقصِ مفتوحةٌ على الهواءِ الطلْقِ، كانَ عزفاً عشوائياً، سقطتْ سبطانةُ البندقيةِ، سوفَ يجدُهَا فلاحٌ بعد مئةِ عامٍ فيظنُها ناياً، سقطتْ أسنانُ جنديٍ شاب بشظيةِ فراشةٍ، لنْ يجدَهَا أحدٌ، سقطتْ قذيفةٌ على مقبرةٍ فقُتِلَ الجنودُ ثانيةً، سقطتْ أحلامُ الذين ظنُّوا أنَّهُم سيعودون فعادتْ قطعُ حديدٍ صغيرةٌ نُقِشَتْ عليها أسماؤُهُم، الرقصةُ العالميةُ الأولى، سقطتْ مدينةٌ برصاصةٍ طائشةٍ، سقطَ الراقصونَ جميعاً، جميعاً، سقطَ العازفُون، سقطَ الطائرُ الواقفُ على الشجرةِ، سقطتْ الشجرةُ، وبقيتْ تفاحةُ نيوتن معلقةً في الهواء، لا جاذبيةَ هنا، ما يُمسكُ أحذيةَ الجنودِ هو الطينُ فقط، وأنا الناجي الوحيدُ من هذه المجزرةِ الرائعةِ، أنا الشاهدُ الذي وصلَ متأخراً، أراقبُ شواهدَ القبورِ بهدوءٍ، صدمتي أمامَ عاديتها يشبهُ صدمتَها أمامَ زائرٍ غير متوقعٍ، شاهدٌ من بلادٍ غير مسموحٍ لأبنائِها بالإدلاءِ بشهادتهم، ضحيةٌ تزور قبور ضحايا.
ـ هل أتيتَ هنا لتستفيدَ من دروسِ الحضارةِ الغربيةِ عن كيفيةِ قتلِ أكبرِ كميةٍ ممكنةٍ من الرجالِ بأحدث ما توصلتْ إليهِ الحضارةُ؟
ـ لا.
هل أتيتَ لتتعلمَ من تجربةِ الموتِ المجانيِّ لـ 600 ألفِ رجلٍ أصبحوا سماداً لأزهارِ الخُشخاش؟
ـ لا.
هل عليكَ أنْ تكتشفَ طريقةً جديدةً لإعادةِ تدويرِ الجنودِ، حيثُ يمكنُ إعادةُ استعمالهم مرةً أُخرى، في حروبٍ أخرى؟
ـ لا.
ـ هل أنتَ هنا لتتعلمَ القتلَ؟
ـ لا، أنا هنا لأتعلمَ الموت.

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دمشق:
كنت ذاهباً للموتِ حين أوقفني المقاتلون، فتشوني فوجدوا قلبي معي، مرَّ وقتٌ طويلٌ لم يشاهدوا فيهِ قلباً مع صاحبِهِ، صرخَ أحدُهُم: لا يزالَ حياً، فقرروا أن يحكموا عليَّ بالحياة، كنتُ أرى نساءَ متشحاتٍ بالبياض يُشبهن الممرضات ولكنهنَّ يُحلقنَّ في الهواء، كانتْ حُقَنُ المورفين تأخذني إلى معاركَ من نوعٍ مختلفٍ، حيثُ الأشجارُ زرقاء، والمياهُ خضراء كالبرتقال، كنتُ أرى نساءَ متشحاتٍ بالبياض يرمقنني ويدخلنَّ في الغيابِ، كانتْ حُقَنُ المورفين تدخلني في الدهاليز التي تقع بين دمشقَ وستوكهولم، فأجدُ نفسي جالساً بانتظار الباص، أفكرُ في بلادٍ يموتُ فيها الناسُ في فراشهم محاطين بالأهلِ، حيث لا يوجدُ إعلاناتٌ لكوكا كولا ولا صورٌ لنساءَ نحيلاتٍ عارياتٍ في كلِّ مكانٍ، أحلمُ أنَّني أُمسكُ قمراً أزرقَ في يدي، وأنَّ الطريقَ خضراءَ، أنَّني أشربُ ماءً بارداً في تموزَ في شرفةِ شقةٍ تطلُّ على دمشقَ من جبلِ قاسيون، أنَّ قلبي معي، وأنَّ أصدقائي لا يزالون على قيدِ الحياةِ، أنَّنا سنلتقي مساءً في مطعمِ النورماندي، ثم سنتسكع في شوارع المدينة القديمةِ حين نُفلسُ، أنَّني جامحٌ والقصيدةُ تقفُ إلى جانبي ضدَّ التاريخ، أحلمُ بالنساء، يا الله كم أحبُّ النساءَ، لقد تعلمتُ من النساء أكثرَ مما تعلمتُ من المدارس، وتعلمتُ من الحربِ أكثرَ مما تعلمتُ من السلم، وأستطيعُ أنْ أؤكدَ لكم، أنَّ كثيراً من الجنودِ يتحولون إلى مجرمي حربٍ، وكثيراً من الشعراء يتحولون إلى مجرمي سلمٍ، وأنَّ الأخبارَ الجيدةَ في الحربِ هي أنْ لا يكونَ هناكَ أخبارٌ سيئةٌ، وأنَّ الذين خسروا الحربَ هم الذين ماتوا، من الطرفين، وأنَّ الحربَ في طفولتها ترضعُ دَمَ الجنودِ، وحين تكبرُ تشوي بساطيرهم على نارٍ هادئةٍ، وأنَّها تموتُ حينَ يعيشون.

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هامش 6:
أُفكرُ بفلسطين، البلادُ التي اخترعتْ اللهَ فتسببتْ بسفكِ ملايين الأرواحِ بإسم الله، بلادُ الحليبِ والعسلِ، التي لا يوجدُ فيها لا حليبٌ ولا عسلٌ، البلادُ المقدسةُ، التي خُضنا من أجلها حروباً مقدسةً، وهُزمنا فيها هزائمَ مقدسةً، وهُجِّرْنَا منها تهجيراً مقدساً، وسكنا من أجلها في مخيماتِ لجوءٍ مقدسةٍ، ومُتنا من أجلها موتاً مقدساً، أفكرُ فيها فيلاحقني صوتُ الشيخِ الذي كلما سألتُهُ ردَّدَ سطراً من القرآن: {يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَسْأَلُواْ عَنْ أَشْيَاءَ إِن تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ}، ولا زلت أتساءَل: أيُّهما أبعدُ عن الأرض؟ كوكب المشتري؟ أم حل الدولتين؟ أيهما أقربُ إلى روحي؟ جنديٌ من بلدي؟ أم شاعرٌ من أعدائي؟ ما هو أسوأُ شيءٍ قامَ به ألفريد نوبل؟ الديناميت؟ أم جائزةُ نوبل؟

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ستوكهولم:
حسناً، أنا الآن في ستوكهولم، أتمتعُ بالرفاهيةِ في بلدٍ لم يخضْ حرباً منذ مائتي عام، حيث كلُّ شيءٍ يحدثُ بصمتٍ، الفرحُ، الحزنُ، الجنونُ، حتى العنفُ يحدث بصمتٍ، ولكنَّني عوضاً عن أن أصابَ بستوكهولم سيندروم، أصبتُ بدمشق سيندروم، وهذهِ حكايةٌ أُخرى، تحتاجُ قصيدةً أُخرى لروايتها، لأنَّها غيرُ موجودةٍ أصلاً، المهم أنَّني لم أعدْ أهتمُ بالتفاصيلِ الجانبيةِ، رقمُ الباصِ المؤدي إلى بيتكِ لم أحفظْهُ حتى اللحظة، رغمَ ذلكَ أَصِلُ في كلِّ مرةٍ إليكِ وأتسلَّلُ بجانبكِ في الفراش، لم أعدْ أتذكرُ كيف غيَّر جَسَدُكِ فهمي للمواقعِ والاتجاهاتِ، أساساً أنا لا أعرفُ أين يقعُ هذا المنزلُ بالضبطِ، إنَّه في مكانٍ ما على الخريطةِ، لا أستعملُ الـ GPS في العشقِ، تزعجُنِي حقيقةُ أنَّهُ يعرفُ الطريقَ إلى بيتكِ أكثرَ مني، أحبكِ بهدوءٍ قاتلٍ، وأسقطُ إليكِ من ارتفاعٍ شاهقٍ، ولكنْ ببطءٍ، ببطءٍ شديدٍ، كما لو أنَّني أستعملُ خاصيةَ الـ slow motion، أسقطُ في حبِّكِ، هكذا، كما يسقطُ الجنودُ برصاصةٍ، كما تسقطُ الأسعارُ في البورصة، كما تسقط جدرانُ الفصلِ العنصريِّ، كما تسقطُ المدنُ المحاصرةُ.
أتذكرُ البداياتِ، حينَ أكلتُكِ في المسرحِ، حين ضِعتُ فيكِ فأشفقَ عليَّ المارةُ، حين وقعتْ من حقيبتكِ شجرةُ تفاحٍ فانفضحَ أمرُنَا، حين أصبحَ الجنسُ سيِّدَ الموقفِ وأصبحتُ أنا عدائيَّاً مثلَ ساعةِ حائطٍ في قاعةِ انتظار.
لم أغيرْ المصباحَ المحروقَ في مدخلِ بيتكِ كما وعدتُكِ قبلَ سنةٍ، لكنَّني غيَّرتُ معتقداتي حول الحضارةِ الغربيةِ، سوف تُغيرني امرأةٌ أُخرى مرةً أُخرى في المستقبلِ إنْ شاءَ الله.
أتسلَّلُ بجانبكِ فتتظاهرين بالنومِ، لكنَّني أشمُ رائحةَ الجنسِ بانتصابةِ حلمتيكِ، فأعرفُ أنَّكِ كاذبةٌ، كاذبة، وأنَّكِ ترغبين أنْ أُبادِرَ أنا بالتهامِكِ، فذلك يُرضيْ النظرةَ الاستشراقيةَ والصورة النمطية التي خلفتْهَا سنواتُ الاستعمارِ الطويلةُ عن الشرقِ عموماً، وعن شابٍ عربيٍ على وجهِ التحديدِ، ولكنَّني بكلِّ ما أملكُ من خبثِ البدويِّ الذي يسكنني، أخيِّبُ آمالكِ، وأُطلِقُ خرافي المسكينةَ لترعى أمامَ ذئبكِ الجائع، وأنتظرُ، وأنتظرُ، وأنتظر... لا يخيِّبُ ذئبُ شهوتِكِ توقعاتي، ممزقاً لحمَ خرافي فوقَ فراشِكِ الأبيضَ الذي يُشبهُ صحراءَ سويديةً من الثلجِ، رائحةُ نهديكِ تتفاعلُ مع ضوءِ غرفتكِ الأصفرَ فيتولَّدُ ثاني أوكسيد النعاس، أتعرَّقُ حتى تختلطَ عليَّ القصائدُ العربيةُ بالسويديةِ، لم أعدْ أهتمُ بالتفاصيلِ الجانبيةِ، لا تهمُنِي مدينةٌ لستِ تعيشين فيها، لا يهمُنِي وطنٌ لست فيه.

ــــــــــــــــــــــ

هامش 7:
الطريقُ إلى دمشقَ مليئةٌ بالذكرياتِ، وأنا متعبٌ منذُ أرضعني المخيمُ حليبَ الأممِ المتحدةِ المجفَّفَ، وأثقلَ كاهلي باللجوء، الطريقُ إلى دمشق التي هجَرْتُها عام 2008 لم تعدْ تُغريني، فبعدَ أنْ تذوقتُ طعمَ الحريةِ لم أعدْ قادراً على التخفي خلفَ المجازِ لكي أنجو من المخبرين.
الطريق إلى إيبر معبدةٌ بالجثث، وأنا متعبٌ منذ قتلني أولا عمي، وتركوني لتأكلني الطير.
الطريقُ إلى ستوكهولم مغلقٌ بسببِ تراكمِ الثلوجِ.
الطريقُ إلى الحرب هادئة، فيها استراحةٌ صغيرةٌ ينزلُ بها المتجهونَ إلى المجزرةِ، يرتاحون قليلاً ويتزودونَ بالماءِ، يشربونَ الشايَ، ويتحدثونَ عن أسبابِ الموتِ الممنهج، في الصباحِ يكملونَ طريقهم كي يتناقشوا بالرصاصِ، وأنا أظلُّ عالقاً بين المتناقضاتِ، أنا الشاهدُ الذي وصلَ متأخراً والشهيد الذي لم يصلْ، القاتلُ والقتيلُّ، الجاني والضحيةُ، أنا الهنديُّ الأحمرُ، أنا الهنديُّ الأزرقُ، أنا الهنديُّ الأخضرُ، أنا الفلسطينيُّ الأسودُ، وهذهِ الحربُ تنقُصُهَا قصيدةٌ كي لا يُولدَ المجازُ ميتاً، كي لا يصبحَ الموتُ ثقيلاً كمدفأةٍ برونزيةٍ تجثمُ على الحكاية، لا يستطيعُ الموتُ أنْ يمنَحَنِي وطناً، وإنْ استطاعَ فإنَّني لا أريدُهُ، إيبر كانتْ كابوساً انتهى منذُ مئةٍ عامٍ، ودمشقُ كابوسٌ يحدث الآن، وأنا عالقٌ في ستوكهولم، القصائدُ التي كتبتُها في دمشقَ أعدمَهَا الجنودُ، والقصائدُ التي كتبتُها في إيبر لم تصعدْ معي إلى الطائرةِ، والقصائدُ التي تسكنُ معي في ستوكهولم مصابةٌ بنقصٍ حادٍ في فيتامين د.

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إيبر:
الحربُ خلفَ البابِ.

ــــــــــــــــــــــ

دمشق:
في الثالثة فجراً، تسقطُ صواريخُ محملةٌ بغازِ السارين في عدةِ أماكنَ في ضواحي دمشقَ المكتظةِ بالسكانِ، تضيقُ حدقاتُ العيونِ، تتَّسِعُ الرؤيةُ، تهتزُّ أجسادُ الأطفالِ بطريقةٍ منظمةٍ، تهتزُّ بشدةٍ، إنَّها هزةٌ أرضيةٌ من نوعٍ مختلفٍ، حيثُ البيوتُ ثابتةٌ والأجسادُ هي التي ترتجفُ، إنَّها هزةٌ أخلاقيةٌ تُصيبُ هذا العالم.

ــــــــــــــــــــــ

ستوكهولم:
المدينةُ هادئةٌ.




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_________________

كُتبتْ هذه القصيدة بعد زيارة لمدة أسبوعين لمدينة إيبر تزامنت مع ذكرى مرور مئة عام على أول هجوم بالسلاح الكيمياوي في التاريخ جرى في حقول الفلاندرز خلال الحرب العالمية الأولى، والنص كُتبَ لصالح مشروع كتاب المدينة 'سيتي بوك' إيبر الذي يقام بالتعاون مع البيت الفلامنكي الهولندي 'ديبورين' الجيران.



© Ghayath Almadho
...

9.
Für Damaskus

Es tötet mich der Sommer, der aus den Schlitzen und Spalten Damaskus'
angeschlichen kommt,
also krieche ich, wie Rost, entlang der Türen dieses Gefängnisses,
das sich in ein Museum
verwandelt hat.
Ich, der im Café sitzt, ängstlich und verschüchtert, in der Dürrezeit.
Ich, der lauthals lacht, in den Zeiten der vollen, listigen Hosentaschen.
Damaskus ist mein rissiges Haus, der Berg Kassioun ist meine Narbe.
Abends breite ich mich aus wie die Autohupen und die fahrenden
Foul-Verkäufer.
Die Fremden und Touristen kennen mich, ich habe keinen Zaun,
und keine Freude hat je mein Gesicht verraten,
außer wenn sie kam, um mein Lachen um Verzeihung zu bitten.
Ich bin das seltsame Gemisch:
In meinem Himmel thronen die Armen und die Kleider der
Schaufenstervitrinen.
Mein Körper ist ein brennendes Weizenfeld und meine Zunge
so bissig wie Schuhe.
Der Polizist, der Lehrer und der rätselhafte Mann starren mich an,
also lache ich traurig,
und sie weinen lachend.
Damaskus gehört mir und ich werde niemandem erlauben,
sich mein Bett mit mir zu teilen,
außer den Bösewichten und Prostituierten.
Ich bin die Abstiegsleiter in den hohen Graben,
ich bin die Fußspur der Diebe im Sand,
mein Körper ist ein Hotel für Durchreisende,
meine Worte sind kleine Evangelien,
verloren einst von den Propheten, übernommen von den Verirrten.
Also werde ich die Brosamen vor die Dornenvögel werfen,
und den Ruhm auf dem Asphalt kastrieren,
so bringen sie es uns bei in den staatlichen Schulen.
Dann lassen sie uns frei, wie Hasen, auf dass wir das Gras
der Unterwürfigkeit kauen,
ich sagte euch bereits, dass ich niemandem erlauben werde,
Damaskus heimlich zuzugucken,
wenn sie badet, ihre kleinen Brüste verschämt entblößt,
ich werde euch nicht erlauben ...
… dass ihr durchgeht.
...

10.
Für Damaskus

Es tötet mich der Sommer, der aus den Schlitzen und Spalten Damaskus'
angeschlichen kommt,
also krieche ich, wie Rost, entlang der Türen dieses Gefängnisses,
das sich in ein Museum
verwandelt hat.
Ich, der im Café sitzt, ängstlich und verschüchtert, in der Dürrezeit.
Ich, der lauthals lacht, in den Zeiten der vollen, listigen Hosentaschen.
Damaskus ist mein rissiges Haus, der Berg Kassioun ist meine Narbe.
Abends breite ich mich aus wie die Autohupen und die fahrenden
Foul-Verkäufer.
Die Fremden und Touristen kennen mich, ich habe keinen Zaun,
und keine Freude hat je mein Gesicht verraten,
außer wenn sie kam, um mein Lachen um Verzeihung zu bitten.
Ich bin das seltsame Gemisch:
In meinem Himmel thronen die Armen und die Kleider der
Schaufenstervitrinen.
Mein Körper ist ein brennendes Weizenfeld und meine Zunge
so bissig wie Schuhe.
Der Polizist, der Lehrer und der rätselhafte Mann starren mich an,
also lache ich traurig,
und sie weinen lachend.
Damaskus gehört mir und ich werde niemandem erlauben,
sich mein Bett mit mir zu teilen,
außer den Bösewichten und Prostituierten.
Ich bin die Abstiegsleiter in den hohen Graben,
ich bin die Fußspur der Diebe im Sand,
mein Körper ist ein Hotel für Durchreisende,
meine Worte sind kleine Evangelien,
verloren einst von den Propheten, übernommen von den Verirrten.
Also werde ich die Brosamen vor die Dornenvögel werfen,
und den Ruhm auf dem Asphalt kastrieren,
so bringen sie es uns bei in den staatlichen Schulen.
Dann lassen sie uns frei, wie Hasen, auf dass wir das Gras
der Unterwürfigkeit kauen,
ich sagte euch bereits, dass ich niemandem erlauben werde,
Damaskus heimlich zuzugucken,
wenn sie badet, ihre kleinen Brüste verschämt entblößt,
ich werde euch nicht erlauben ...
… dass ihr durchgeht.
...

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