Teri roshani तेरी रोशनी Poem by Shiv Abhishek Pande

Teri roshani तेरी रोशनी

तेरी रोशनी को तड़पती मेरी आँखें
इस जहां की रैन मे ख़ाक छानती है
तेरी उम्मीद मे मेरे खुदा
मेरी हर सांस तेरी महक पहचानती है

जानता हूँ तू है मुझमे ही कहीं
मेरी हर सांस रोम रोम मे तेरी मौजूदगी मानती है
गुमराह हूँ भटकती हसरतों के जोश मे
अब बस तेरी उम्मीद ही मेरी मंजिल पहचानती है

खो देता हूँ मै तेरे एहसास को कई दफे
इस दुनिया की साजिशें मुझे कितना बहकाती है
तेरी रहम के मै हूँ आज भी तुझसे वाकिफ
वर्ना तो मजिल कहाँ अपना पता बताती है

तेरे होने से जब होता हूँ मै आबाद
तब मुझे तेरे नूर की प्यास और सताती है
तू हर दम रहे मेरे ज़हन मै
मेरी इबदाद मुझे यही एक जरिया बताती है

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success