तेरी रोशनी को तड़पती मेरी आँखें
इस जहां की रैन मे ख़ाक छानती है
तेरी उम्मीद मे मेरे खुदा
मेरी हर सांस तेरी महक पहचानती है
जानता हूँ तू है मुझमे ही कहीं
मेरी हर सांस रोम रोम मे तेरी मौजूदगी मानती है
गुमराह हूँ भटकती हसरतों के जोश मे
अब बस तेरी उम्मीद ही मेरी मंजिल पहचानती है
खो देता हूँ मै तेरे एहसास को कई दफे
इस दुनिया की साजिशें मुझे कितना बहकाती है
तेरी रहम के मै हूँ आज भी तुझसे वाकिफ
वर्ना तो मजिल कहाँ अपना पता बताती है
तेरे होने से जब होता हूँ मै आबाद
तब मुझे तेरे नूर की प्यास और सताती है
तू हर दम रहे मेरे ज़हन मै
मेरी इबदाद मुझे यही एक जरिया बताती है
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